सूतक क्या है ? Harmful time 4 any auspicious work-sootak

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सूतक क्या है ? Harmful time 4 any auspicious work-sootak

सूतक क्या है ? जब भी कोई हमसे ये कहता कि हमे ये शुभ काम अभी नही करना चाहिए क्योंकि सूतक (sootak) लगा हुआ है तो हममे से अनेक साथी ये सोचने लगते हैं कि ये सूतक क्या है , सूतक (sootak) क्यों लगता है , तो साथियों आज इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको ये पता लग जाएगा कि सूतक क्या है , सूतक किसे कहते हैं,सूतक क्यों लगता है ?

सूतक (sootak) वो अशुभ समय होता है जिसमे किसी भी शुभ कार्य को करने से बचना चाहिए  क्योंकि यदि हम अपने जीवन से जुड़े शुभ कार्यों को शुभ समय में कर देंगे तो जो अशुभ समय की अशुभता होती है उसके प्रभाव से हमारे शुभ कार्य की सफलता में एक संदेह उत्पन्न हो जाता है , 

आइये अब हम जान लेते हैं कि सूतक क्यों लगता है और सूतक कितने प्रकार के होते हैं ?

सूतक के प्रकार – सूतक कितने प्रकार का होता है ? 

विभिन्न पुराणो , पराशर स्मृति, गौतम स्मृति, मनुस्मृति, धर्मसिंधु आदि अनेक ग्रंथों में सूतक के विषय में समझाया गया है जैसे सूतक दो प्रकार के होते हैं , सूतक को ही अशौच काल भी कहा जाता है । इसप्रकार ये अशौच काल – जन्माशौच या मरणाशौच होते है । आइये इन दोनों प्रकार के सूतक यानि अशौच काल को समझते हैं 

जन्म के बाद लगने वाला सूतक क्या है ?

जब हमारे परिवार में सदस्यों की वृद्धि होती है अर्थात कोई सन्तान जन्म लेती है तो जन्म लेने के कुछ दिन बाद तक परिवार वालों को सूतक (sutak) से जुड़े नियमों का पालन करना होता है ।

जैसे परिवार का कोई भी सदस्य इस समय पूजा – पाठ , अपने कुल परिवार से जुड़े धार्मिक क्रिया कलाप , दान आदि नही कर सकता है और इस समय को सूतक काल कहते है। इसे भिन्न भिन्न राज्यों और स्थानों में अलग अलग नामो से भी जाना जाता है जैसे इसे  उत्तर प्रदेश,बिहार , मध्यप्रदेश, हरियाणा , छतीसगढ़ आदि में ‘सूतक’ कहते है , कुछ लोग इसे छूतक भी कहते है और राजस्थान और आसपास के स्थानों पर इसे ‘सावड़’ भी कहते हैं। महाराष्ट्र में इसे ‘वृद्धि’ कहते हैं  

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जन्म के बाद लगने वाला सूतक कितने दिनों का होता है ?

परिवार में किसी के जन्म लेने पर उस परिवार के लोगों पर 10 दिन के लिए सूतक लग जाता है और इन 10 दिनों में परिवार के सभी सदस्यों को किसी भी धार्मिक कार्य से दूर रहना चाहिए ।

जैसे मंदिर ,पूजा – पाठ , अपने कुल परिवार से जुड़े धार्मिक क्रिया कलाप आदि  नहीं करने चाहिए । इसके साथ ही शिशु को जन्म देने वाली स्त्री को रसोईघर में , घर के मंदिर में नही जाना चाहिए ।

सूतक काल के बाद घर आँगन की शुद्धि करवाकर जैसे यज्ञ – हवन करवाकर मंदिर – रसोईघर  में प्रवेश कर सकते हैं ।

जन्म के बाद लगने वाला सूतक का वैज्ञानिक महत्व 

एक शिशु को जन्म देने की प्रक्रिया जटिल और कठिन होती है और इसमें महिलाओं का शरीर शिशु को जन्म देने के बाद बहुत कमजोर हो जाता है। इस  स्थिति में एक स्त्री काम करने की स्थिति में नहीं होती है और उसे आराम की आवश्यकता होती है जोकि सूतक के नाम से मिलने वाले समय में उन्हें मिल जाता है और कुछ समय बाद वो घर परिवार सँभालने के स्थिति में आ जाती हैं ।

मृत्यु के बाद लगने वाला सूतक : पातक क्या है ?

(पातक किसे कहते हैं?

जिस प्रकार जन्म के बाद के समय को सूतक (sutak) कहा जाता है ठीक उसी प्रकार जब परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होती है तब मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार वाले दिन तक के समय को भी सूतक कहा जाता है , कुछ धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इस समय को पातक भी कहा जाता है

जैसे गरुण पुराण के अनुसार परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार तक के समय को पातक कहा जाता है, गरुण पुराण में इस समय को सूतक नही कहा गया है , इसीलिए जानकार लोग सूतक और पातक को अगल अलग मानते हैं किंतु इन दोनों समय का प्रभाव एक जैसा ही माना गया हैं अर्थात ये दोनों (जन्म-मरण) समय शुभ कार्यों के लिए वर्जित है 

गरुण पुराण के अनुसार जब भी किसी परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तब परिवार के सदस्यों को अपने घर परिवार में ब्राह्मण – पंडित बुलाकर गरुण पुराण का पाठ करवाना चाहिए और पातक के नियमों को समझते हुए उसका पालन करना चाहिए।

मृत्यु सूतक अर्थात पातक कितने दिनों का होता है

गरुण पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार तक के समय अर्थात पातक लगने के 13 वें दिन अंतिम संस्कार करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और मृत व्यक्ति से जुडी सभी वस्तुओं जैसे कपड़ों, बक्सों,रजाई – गद्दों को निर्धन और निर्बल लोगों में बांट देना चाहिए।

मृत्यु सूतक अर्थात पातक किसे लगता है ? 

कूर्म पुराण के अनुसार सूतक क्या है ?

जो लोग संन्यासी हैं, गृहस्थ आश्रम में प्रवेश नहीं किए हैं। जो लोग वेदपाठी संत हैं उनके लिए सूतक का विचार मान्य नहीं होता है। 

विष्णु पुराण और कूर्म पुराण के अनुसार सूतक क्या है ?

वेदपाठी संतो-  साधु और संन्यासियों की मृत्यु पर मात्र स्नान कर लेने से ही सूतक अर्थात अशौच समाप्त हो जाता है।

पराशर स्मृति के अनुसार सूतक क्या है ?

राजा और राजपुरोहित को सूतक अर्थात अशौच नहीं लगता है और इन्हें अपने काम सामान्य समय जैसे ही करते रहना चाहिए 

गौतम स्मृति के अनुसार सूतक क्या है ?

राजा को ये दोष नही लगता है और यदि राजा मात्र स्नान कर ले तो वो शुद्ध हो जाता है ।

शंख स्मृति के अनुसार सूतक क्या है ?

 ‘ राजा धर्म्यायतनं सर्वेषां तस्मादनवरुद्धः प्रेतप्रसवदोषैः’। अर्थात यदि इनके लिए अशौच या सूतक सोचा जाए तो विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों में बाधा आ सकती है इसलिए ये इस दोष से मुक्त हैं क्योंकि इतना महत्वपूर्ण पद इन्हें अपने पूर्वजन्म में किये गए सत्कर्मों / पुण्य कर्मों से ही प्राप्त हुआ है इसलिए ये दोष मुक्त हैं ।

विभिन्न शास्त्र और पुराणों के अनुसार सामान्य गृहस्थ जनों के लिए सूतक का दोष किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी सात पीढ़ियों पर लगता है और उन्हें सूतक के नियम मानने ही चाहिए ।

वहीं परिवार की पुत्रियों के लिए सूतक अधिकतम 3 दिनों का ही होता है । 

सूतक क्या है sootak

 

image credit : pexels 

सूर्य ग्रहण के बाद लगने वाला सूतक क्या है ?

सूर्य ग्रहण के समय सूतक ग्रहण से 12 घंटे पहले ही लग जाता है , सूतक लगने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। 

चंद्र ग्रहण के बाद लगने वाला सूतक (sootak)

चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक 9 घंटे पहले ही लग जाता है। सूतक लगने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

 

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स्त्री के मासिक धर्म के समय में लगने वाला सूतक क्या है ?

आज के आधुनिक समय में अनेक लोग इस प्रकार के सूतक को नही मानते है या उनकी ऐसी विवशता है ( जैसे परिवार में भोजन बनाने वाली एक ही स्त्री होना – या सयुंक्त परिवार से दूर एकल परिवार में रहना )  जिसके कारण ये सूतक मान्यता से बाहर होता जा रहा है किंतु जो लोग अपने कुल परिवार की परम्पराओं से जुड़े हुए है वो आज भी मासिक धर्म के समय लगने वाले सूतक को भी अन्य सूतकों जैसा ही मानते हैं ,

मासिक धर्म के समय लगने वाले सूतक से एक कथा भी जुडी हुई है । जिसके अनुसार एक समय देवराज इंद्र से एक ब्राह्मण की हत्या हो गई और उस हत्या के पाप का एक अंश महिलाओं को मिला था और इसी कारण महिलाओं को मासिक धर्म होता है और इस समय महिलाओं को अपवित्र माना जाता है जिससे वो किसी भी धार्मिक कार्यो में भाग नही ले पाती है।

सूर्यग्रहण – चंद्रग्रहण में किन बातों पर ध्यान देना चाहिए 

ग्रहण को भूलकर भी कभी भी नहीं देखना चाहिए।

गर्भवती महिलाओं को सूर्यग्रहण – चंद्रग्रहण में घर से बाहर बिलकुल भी नही निकलना चाहिए क्योंकि ग्रहण की किरणों से गर्भ में पल रहे शिशु पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है ।

घर में भोजन नहीं पकाना चाहिए क्योंकि ग्रहण की किरणों से भोजन अशुद्ध हो जाता है।

शौचालय नही जाना चाहिए किंतु रोगी-बच्चों और घर के वृद्ध लोग पर ये नियम लागून नही होता है , वैसे जहाँ तक संभव हो तो सभी को शौच जाने से बचना चाहिए।

किसी नये शुभ काम का प्रारंभ नही करना चाहिए।

घर में रखे खाने पीने के सामान को अशुद्ध होने से बचाने के लिए सभी में तुलसी जी का एक-एक पत्ता सूतक से पहले ही डाल देना चाहिए किंतु सूतक में तुलसी को नहीं  छूना चाहिए।

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