ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि Ucch Neech Swagrahi and Mool Trikona Rashi of planets

9 ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि Ucch Neech Swagrahi and Mool Trikona Rashi of planets

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9 ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि Ucch Neech Swagrahi and Mool Trikona Rashi of planets

ज्योतिष मे ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि (Ucch Neech Swagrahi and Mool Trikona Rashi of planets) जाने बिना हम कुंडली के विभिन्न योग नही समझ सकते हैं , आज हम आपको इसी विषय को विस्तार से बता रहे हैं जिसे पढ़ कर आप जान जाएँगे विभिन्न ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि Ucch Neech Swagrahi and Mool Trikona Rashi of planets

9 ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि Ucch Neech Swagrahi and Mool Trikona Rashi of planets

आइये जानते हैं विभिन्न

9 ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

1. सूर्य की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

सूर्य ‘सिंह’ राशि का स्वामी है, अतः यदि वह ‘सिंह’ राशि में स्थित हो तो। उसे ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कहा जाएगा। परंतु यदि सूर्य ‘सिंह’ राशि में स्थित हो तो सिंह राशि के 1 से 20 अंश तक उसका ‘मूल त्रिकोण’ माना जाता है तथा 21 से 30 अंश तक ‘स्वक्षेत्र’ कहा जाता है। मेष के 10 अंश तक सूर्य ‘उच्च’ का तथा तुला के 10 अंश तक ‘नीच’ का होता है, यह बात पहले बताई जा चुकी है।

2. चंद्र की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

चन्द्र ‘कर्क राशि का स्वामी हैं, अतः यदि वह ‘कर्क’ राशि में स्थित हो तो उसे ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कहा जाएगा। परंतु यदि चंद्रमा ‘वृष राशि में स्थित हो तो वह वृष राशि के 3 अंश तक उच्च का तथा इसी (वृष) राशि के 4 अंश से 30 अंश तक मूल त्रिकोण स्थित माना जाता है। वृश्चिक राशि के 3 अंश तक चन्द्रमा नीच का होता है, इसे पहले बताया जा चुका है।

3. मंगल की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

– मंगल ‘मेष’ तथा ‘वृश्चिक राशि का स्वामी है, अतः यदि वह ‘मेष’ अथवा ‘वृश्चिक राशि में स्थित हो तो उसे ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कहा जाएगा। परंतु मेष राशि के 1 से 18 अंश तक मंगल का ‘मूल त्रिकोण’ तथा 19 से 20 अंश तक ‘स्वक्षेत्र’ कहा जाता है। मकर के 28 अंश तक मंगल उच्च का तथा कर्क के 28 अंश तक नीच का होता है, यह बात पहले बताई जा चुकी है।

4. बुध की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

बुध’ कन्या’ एवं ‘मिथुन’ राशि का स्वामी है, अतः यदि बुध ‘कन्या’ अथवा ‘मिथुन’ राशि में स्थित हो तो उसे ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कहा जाएगा। परंतु कन्या राशि के 1 से 18 अंश तक बुध का ‘मूल त्रिकोण’ तथा उससे आगे 19 से 30 अंश तक ‘स्वक्षेत्र’ माना जाता है। कन्या राशि के 15 अंश तक बुध उच्च का तथा मीन राशि के 15 अंश तक नीच का होता है, यह बात पहले बताई जा चुकी है।

इस प्रकार यदि बुध कन्या राशि में स्थित हो तो वह कन्या राशि के 1 से 15 अंश तक उच्च का और इसके साथ ही 1 से 18 अंश तक मूल त्रिकोण स्थित तथा 19 से 30 अंश तक स्वक्षेत्री होता है।

5. गुरु की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

गुरु’ धनु’ एवं ‘मीन’ राशि का स्वामी है, अतः यदि गुरु ‘धनु’ अथवा ‘मीन’ राशि में स्थित हो तो उसे ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कहा जाएगा। परंतु धनु राशि के 1 से 13 अंश तक गुरु का मूल त्रिकोण’ होता है और उसके बाद 14 से 30 अंश तक ‘स्वक्षेत्र’ है। कर्क राशि के 5 अंश तक गुरु उच्च का तथा मकर राशि के 5 अंश तक नीच का होता है, यह बात पहले बताई जा चुकी है।

6. शुक्र की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

शुक्र ‘ वृष’ तथा ‘तुला राशि का स्वामी है, अतः यदि शुक्र ‘वृष’ अथवा ‘तुला राशि में स्थित हो तो उसे ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कहा जाएगा। परंतु तुला राशि के 1 से 10 अंश तक शुक्र का ‘मूल त्रिकोण’ होता है, तत्पश्चात् 11 से 30 अंश तक उसका ‘स्वक्षेत्र’ है। मीन राशि के 27 अंश तक गुरु उच्च का तथा कन्या राशि के 27 अंश तक नीच का होता है, यह बात पहले बताई जा चुकी है।

7. शनि की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

शनि ‘मकर’ तथा ‘कुम्भ राशि का स्वामी है, अतः यदि शनि ‘मकर’ अथवा ‘ कुंभ राशि में स्थित हो तो उसे ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कहा जाएगा। परंतु कुंभ राशि के 1 से 20 अंश तक शनि का ‘मूल त्रिकोण’ होता है और उसके बाद 21 से 30 अंश तक ‘स्वक्षेत्र’ है। तुला राशि के 20 अंश तक शनि ‘उच्च’ का होता है, यह बात पहले बताई जा चुकी है।

8. राहु की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

राहु किसी भी राशि के स्वामी नही होते हैं किन्तु वो बुध की राशियाँ मिथुन और कन्या राशि मे सर्वोत्तम फल देता  है  , इस प्रकार अनेक विद्वान राहु को कन्या राशि का स्वामी मानते है, इस प्रकार आप राहु को कन्या’ राशि में स्थित होने पर ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कह सकते हैं ।

अनेक विद्वान राहु को मिथुन राशि मे तो कुछ वृष राशि मे उच्च का मानते हैं जब राहु मिथुन मे उच्च का माना जाता है तो धनु राशि मे नीच का हुआ वहीं जब राहु वृष राशि मे उच्च का हुआ तो वृश्चिक मे नीच का हुआ । कर्क राशि को राहु की मूल त्रिकोण राशि माना जाता है।

9. केतु की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि

केतु को मिथुन राशि का स्वामी माना गया है, अतः यदि केतु ‘मिथुन’ राशि में स्थित हो तो उसे ‘स्वग्रही’ अथवा ‘स्वक्षेत्री’ कहा जाता है। धनु राशि के 15 अंश तक केतु उच्च का तथा मिथुन राशि के 15 अंश तक नीच का होता है, यह बात पहले बताई जा चुकी है। इसके विपरीत कुछ अन्य विद्वानों के मत से ‘वृश्चिक राशि में केतु उच्च का तथा ‘वृष’ राशि में नीच का होता है। सिंह राशि को केतु का मूल त्रिकोण माना जाता है।

नवग्रह चालीसा-Navgrah Chalisa in hindi & english

निष्कर्ष : साथियों हम आशा करते है कि इस पोस्ट “ग्रहों की उच्च नीच स्वग्रही और मूल त्रिकोण राशि Ucch Neech Swagrahi and Mool Trikona Rashi of planets “

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श्री गणेश ज्योतिष समाधान 

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