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Uttarayan Dakshinayan detailed info उत्तरायण और दक्षिणायन किसे कहते हैं?
Uttarayan Dakshinayan
जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक परिभ्रमण करते है तो उस समय तक सूर्य उत्तरायण कहलाते है और ये समयावधि 6 माह की होती है और जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक परिभ्रमण करते है तो उस समय तक सूर्य दक्षिणायन कहलाते है
दक्षिणायन को सही समय नही माना जाता है और इसे नकारात्मक समझा जाता है वहीं उत्तरायण शुभ माना जाता है और इस समयावधि को सकारात्मक माना जाता है। सूर्य संक्रांति से सौरमास का आरम्भ माना जाता है और सूर्यदेव की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति को सौरमास कहा जाता है ।
उत्तरायण और दक्षिणायन में सूर्य की स्थिति Uttarayan Dakshinayan
एक वर्ष में दो बार सूर्य की स्थिति में इस प्रकार का परिवर्तन होता है
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं अर्थात मकर संक्रांति के दिन से दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं. उत्तरायण काल को देवताओं का समय कहा जाता है और इसीलिए उत्तरायण काल में सभी शुभ कार्य करने की परम्परा है जैसे गृह प्रवेश, यज्ञ, व्रत, विवाह, मुंडन आदि शुभ कार्य के लिए इन्हें शुभ माना जाता हे
इसीलिए भीष्म पितामह चाहते थे कि उनकी मृत्यु उत्तरायण काल में हो और उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी और कहते है कि इस दिन गंगा जी स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थी
जबकि दक्षिणायन में सूर्य होते है तो दिन छोटे और राते बड़ी होने लगती है ,दक्षिणायन का आरम्भ 21/22 जून से होता है और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि माना जाता है
इसीलिए दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य करने से बचना चाहिए, ये समय इच्छाओं, कामनाओं और भोग की वृद्धि को दर्शाता है , दक्षिणायन को व्रतों एवं उपवास के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है
उत्तरायण काल में तीन ऋतुएं होती है- शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म है.
उत्तरायण और दक्षिणायन के बीच क्या अंतर है? Uttarayan Dakshinayan
उत्तरायण में शरद , बसंत और ग्रीष्म आते हैं जबकि दक्षिणायन में बारिश के दिन और शरद ऋतु आते हैं।
उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक कहा गया है वहीँ दक्षिणायन नकारात्मकत माना गया है
उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं वहीं दक्षिणायन में दिन छोटे और राते लंबी होती हैं