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लाल किताब से जाने अपना भाग्य Lal kitab se jaane apna bhagya-A 2 Z full information
Lal kitab se jaane apna bhagya -लाल किताब से जाने अपना भाग्य पोस्ट के द्वारा आज आप जानेंगे लाल किताब मे भाग्य का निर्धारण करने वाले कौन से ग्रह , वैसे तो लाल किताब के मूल लेखक के विषय में कोई नही जानता है किन्तु लाल किताब पर आधारित अनेक अच्छी पुस्तके उपलब्ध और इनमे से आपके लिए सही जानकारी एकत्रित करना कठिन कार्य है क्योंकि लाल किताब उर्दू भाषा में दोहों के रूप में लिखी गई है।
आज हम सब भी लाल किताब से जाने अपना भाग्य (Lal kitab se jaane apna bhagya)
image source : unsplash
लाल किताब से जाने अपना भाग्य
Lal kitab se jaane apna bhagya
लाल किताब मे ये कहा गया है कि “लग्न अगर खुद खाली होवे, किस्मत साथ न आई हो। किस्मत उसके सातवें बैठी, या घर चौथे दसवें हो। मुट्ठी के घर चारों खाली होवे, दो छः बारह आठ में हो। घर बाहर ही घूम के देखो, उच्च कायम या घर का हो। किस्मत का वो मालिक होगा, बैठा तख्त पर उसके हो।
इन दोहे रूपी पंक्तियों का सार ये है कि
सर्वप्रथम लग्न को अर्थात भाग्य जानने के लिए सबसे पहले कुंडली के प्रथम भाव को देखना चाहिए क्योंकि जो ग्रह प्रथम भाव में बैठा होगा वही व्यक्ति के भाग्य का निर्णय करता है ।
यदि प्रथम भाव में कोई ग्रह न हो अर्थात प्रथम भाव खाली हो तो ये जान लीजिये कि व्यक्ति अपने जीवन मे भाग्य लेकर नहीं आया है। ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्मों से कुछ कमाकर नहीं लाया होता है और इसलिए उसे अपना भाग्य जगाने के लिए सहारा लेना पड़ता है। क्योंकि कुंडली का प्रथम भाव खाली हो तब भाग्य साथ नही देता है तब अपना भाग्य जगाने के लिए अपनी पत्नी के भाग्य का सहारा लेना चाहिए ।
7 th भाव मात्र पत्नी का ही नहीं, बल्कि अपने व्यवसाय व पार्टनर का भी है। इनके द्वारा धन अर्जित कर वह अपना भाग्य बना सकता है।इसलिए यदि पहला भाव खाली अर्थात लग्न में कोई ग्रह न हो, तो 7 th भाव में बैठे ग्रह को देखें क्योकि वही भाग्य जगाने वाला ग्रह होगा।
जब प्रथम भाव व 7 th भाव दोनों ही खाली हो, तब मनुष्य को अपना भाग्य अपनी माता, अपने घर तथा अपनी ननिहाल में आश्रय लेना पड़ता है और माता, अपना पर य ननिहाल जन्मकुंडली का 4 th भाव है। इस कारण प्रथम व 7 th भाव खाली होने पर 4 th भाव में बैठा ग्रह भाग्य जगाने वाला ग्रह बन जाता है।
जब स्वयं, पत्नी, माता या ननिहाल के घरों में कोई ग्रह न हो अर्थात प्रथम, 7 th व 4 th भाव खाली हो, तब उसे अपने कर्म का अपने पिता का, अपने स्वामी का सहारा लेकर अपना भाग्य बनाना होता है। इस कारण लग्न, 4 th और 7 th भाव खाली होने पर 10 th भाव में बैठे ग्रह को भाग्य जगाने वाला ग्रह माना है।
इस कारण प्रथम, 4 th, 7 th व 10 th भाव को बंद मुट्ठी कहा गया है और बंद मुट्ठी में क्या है ये ईश्वर ही जानता है। अतः सबसे पहले भाग्य जगाने वाला ग्रह ग्रह ढूंढने के लिए इन्हीं चार भावों को महत्त्व दिया गया है।
क्योंकि मनुष्य का अपने जन्म, अपनी पत्नी, अपनी माता व अपने पिता के बारे में स्वयं निर्णय लेना, उन्हें पसंद या नापसंद करना, उसके अपने वश में नहीं है। वह अपनी इच्छा से न तो जन्म ले सकता है, न ही अपनी पसंद के अनुसार पत्नी का चयन कर सकता है और न ही अपने माता पिता का चयन कर सकता है ।
कुंडली का पहला, चौथा, सातवा, एवं दसवां भाव खाली हो, तब भाग्य जगाने वाला ग्रह कुंडली के भावों मे ढूंढा जाता है जोकि उस व्यक्ति के अन्य संबंधों पर निर्भर होते हैं जोकि क्रमशः इस प्रकार हैं-
9 th भाव – 9 th भाव ईश्वरीय सहायता का घर है। यदि लग्न, 4 th, 7 th, 10 th भाव खाली हो, तब ईश्वर का आशीर्वाद या देवी सहायता से मनुष्य का भाग्य बनता है, अतः मुट्ठी के बंद खानों के खाली होने पर नौवें घर में बैठा ग्रह भाग्य जगाने वाला ग्रह ग्रह बनता है।
3 rd भाव — देवी (ईश्वरीय) सहायता न मिलने (9 th घर खाली होने पर व्यक्ति को अपने बाहुबल, भाइयों का सहारा ढूंढ़ना पड़ता है और वह उनसे सहायता की आशा रखता है। अपने बड़े भाइयों व अपने पराक्रम से वह अपना भाग्य बना सकता है। इस कारण लग्न, 4 th, 7 th, नवम, 10 th घर खाली होने पर तीसरे भाव में स्थित ग्रह को भाग्य जगाने वाला ग्रह ग्रह मानते हैं।
5 th भाव अपने भाइयों व अपने पराक्रम के अभाव में (3 rd भाव खाली होने पर) व्यक्ति अपनी संतान पर अपने भाग्य की नींव रखने की आशा करता है। वह सोचने लगता है कि अपने स्वयं, अपने माता-पिता, अपने भाई-बंधुओं से आश्रय न मिला तो उसकी संतान उसका भाग्य चमकाएगी। इस दशा में 5 th भाव का ग्रह भाग्य जगाने वाला ग्रह बन जाता है।
11 th भाव-यह मित्रों का भाव है। सभी ओर से निराशा हाथ लगने पर यह अपने मित्रों से सहायता की अपेक्षा रखता है। अतः 1,4,7,10,9,3 व 5यां भाव खाली होने पर ग्यारहवें भाव में बैठा ग्रह भाग्य जगाने वाला ग्रह बन जाता है।
2 nd भाव – यह परिवार को दर्शाने वाला भाव है। अतः 1,4,7,10,9,3,5, व 11 वां भाव खाली होने पर दूसरे भाव में बैठा ग्रह भाग्य जगाने वाला ग्रह बन जाता है। ‘अब परिवार के सदस्य ही उस व्यक्ति की सहायता कर सकते हैं।
6 th भाव – उपर्युक्त स्थानों से किसी प्रकार की सहायता न मिलने पर व्यक्ति को दूसरों की नौकरी चाकरी करके अपना जीवन-यापन करना पड़ता है। ऐसी दशा में छठे भाव में बैठा ग्रह भाग्य जगाने वाला ग्रह बन जाता है।
12 th भाव – 9,3,5,11, 2 nd व 6 th भाव खाली होने पर (अर्थात इन घरों से भाग्य को बनाने में सहायता न मिलने पर) मनुष्य को बाहर के संबंधों से भाग्य को बनाना पड़ता है। ऐसी दशा में बारहवें भाव में बैठा ग्रह भाग्य जगाने वाला ग्रह बन जाता है।
8 th भाव — जब व्यक्ति न तो स्वयं से, न मां-बाप से, न भाई-बहनों से, न संतान से, न मित्रों से और न ही बाहरी संबंधों से कोई सहायता पाने में समर्थ हो तो उस दशा में मृत्यु ही उसका भाग्य बन जाती है अर्थात आठवें भाव में बैठा ग्रह ही उसके भाग्य का फैसला करने वाला होता है। इस प्रकार क्रमशः 1,7,4, 10,8,3,5,11,2,6,12 व नौवें भावों को भाग्य जगाने वाला ग्रह ग्रह ढूंढ़ने में प्रयोग कर हैं।
भाग्य जगाने वाला ग्रह जानने के लिए ये क्रम ही पर्याप्त नहीं है बल्कि भाग्य जगाने वाला ग्रह जानने के लिए ये देखा जाता है कि ऐसा ग्रह अपनी उच्च राशि में हो अथवा स्वराशि मे हो
निष्कर्ष :
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