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5 best tourist places in north india(north india temple tour)-गर्मियों से पहले कहाँ घूमे

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5 best tourist places in north india(north india temple tour)-गर्मियों से पहले कहाँ घूमे

गर्मियों से पहले घूमना चाहते है तो आपको google पर 5 best tourist places in north india search करें , अब आप सोच रहे होंगे कि 5 best tourist places in north india ही search क्यों करें तो इसका उत्तर ये है कि एक बार में इससे अधिक आप घूम नही सकेंगे और जब भी आप तीर्थ करना चाहते है तो google आपको बहुत सारे tourist destination ( teerth) दिखा देगा रहा है किन्तु उसमे से बहुत सारे ऐसे तीर्थ ( teerth – pilgrimage ) होते हैं जिनको आप गर्मियों में नही घूम सकते है

ये सभी तीर्थ ( teerth ) अधिकतर उत्तरी भारत में स्थित होते हैं जहाँ गर्मियों के दिन में बहुत गर्मी पड़ती है और आप ये decide नही कर पाते है की  उत्तर भारत के तीर्थ यात्रा कैसे करें तो maihindu.com आपको बताएगा की गर्मियों के दिनों में 5 best tourist places in north india कौन से है

गर्मियों से पहले मार्च के महीने या होली से पहले का समय हम सभी के लिए north india temple tour  से अच्छा विकल्प कोई नही हो सकता है क्योंकि आप घूम भी लेंगे और साथ साथ तीर्थ भी हो जायेंगे हम आपको बताने जा रहे है 5 best tourist places in north india कौन कौन से है ।

साथियों north india temple tour में आपका काफी समय लग सकता है क्योंकि north india में अनेकों temples है किन्तु हम आपको यहाँ कुछ selected temples बता रहे है जिससे आपको अपना north india temple tour हमेशा याद रहेगा  :-

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की यात्रा में आपको सबसे पहले बताते हैं देवों के देव महादेव के विषय में 

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काशी विश्वनाथ- Kashi Vishvanath A Great Hindu Temple -Varanasi

एक ऐसा तीर्थ , एक ऐसा मंदिर जिसके नाम में ही उसका अर्थ छुपा है |

जी हाँ , काशी विश्वनाथ पूरे संसार के नाथ है पूरे विश्व के स्वामी है| वाराणसी में माँ गंगा के किनारे स्थित इस मंदिर में विराजित प्रभु भोलेनाथ के दर्शन करने पूरे विश्व से लोग आते है |

काशी विश्वनाथ मंदिर (one of 5 best tourist places in north india ) बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है और पूरे विश्व में प्रसिद्ध है|

Ganga
Ganga arti 

दशावमेध घाट – काशी विश्वनाथ के सबसे निकट का घाट

वाराणसी में माँ गंगा के किनारे अनेक घाट है लेकिन दशावमेध घाट प्रभु काशी विश्वनाथ के सबसे निकट का घाट है|संध्या के समय यहाँ होने वाली माँ गंगा की आरती के दर्शन देश विदेश से आये सैकड़ों भक्तजन करते है |

काशी विश्वनाथ का जो वर्तमान में मंदिर है , उसका निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन 1780 में करवाया गया था | कुछ वर्षो बाद महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने का छत्र बनवाया और महाराजा नेपाल ने यहाँ विशाल नंदी की प्रतिमा बनवाई ।

varanashi

हिन्दू धर्म में ये कहा जाता है कि प्रलयकाल में भी वाराणसी विलुप्त नही होती है । उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और प्रलयकाल बीत जाने पर इसे नीचे उतार देते हैं। हिन्दू धर्म कि मान्यता के अनुसार वाराणसी नगर की धरती सृष्टी के आरम्भ से है और सृष्टि के अंत तक रहेगी। भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना इसी स्थान पर तपस्या की थी और शिव जी को प्रसन्न किया था |प्रभु विष्णु के शयन काल में उनके नाभि से उत्पन्न कमल पर विराजित ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की।

अगर आप यहाँ कुछ दिन रुक कर धर्म लाभ लेना चाहे तो मंदिर के पास ही अनेक धर्मशाला व होटल है |

5 best tourist places in north india की इस post की शुरुआत में ही हमने काशी विश्वनाथ के विषय में इसलिए बताया है क्योंकि यहाँ आने से आपकी 12 jyotirlinga का 1 teerth भी पूरा हो जाता है  

काशी विश्वनाथ मंदिर के विषय में सम्पूर्ण वर्णन में जानने के लिए click करें  …

 

5 best tourist places in north india की यात्रा में second number का teerth वाराणसी में ही स्थित हैं…

संकट मोचन मंदिर-sankat mochan varanasi a 2 z easy information

5 best tourist places in north india की यात्रा में भारत में हनुमान जी के विशेष मंदिरों में से एक है वाराणसी में स्थित संकट मोचन मंदिर भी आता है | वाराणसी नगर के दक्षिण में और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के निकट उत्तरी दिशा में भगवान् राम के परम भक्त हनुमान जी का सभी संकटों को दूर करने वाला एक चमत्कारी मंदिर है जो सारे संसार में संकट मोचन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है ।

हनुमान जी के ऐसे बहुत कम मंदिर है जिनमे हनुमान जी के ठीक सामने उनके आराध्य प्रभु श्रीराम विराजित है , संकटमोचन मंदिर भी उन्ही में से एक मंदिर है जिसमे श्री हनुमान जी की मूर्ति ठीक सामने प्रभु श्री राम विराजित है |

संकट मोचन हनुमान जी मंदिर की एक विशेषता और है कि यहाँ स्थापित भगवान हनुमान की मूर्ति मिट्टी की बनी हुई है। संकट मोचन मंदिर के प्रांगण में एक अति प्राचीन कूआँ है जिसके बारे में ये कहा जाता है कि जो संत तुलसीदास जी के समय का है |

संकट मोचन हनुमान जी मंदिर की एक और विशेषता बहुत ही कम लोग जानते है कि गोस्वामीतुलसी दास जी अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपनी भुजाओं में होने वाले असहनीय दर्द से पीड़ित थे और उसी असहनीय दर्द की अवस्था में ही संकट मोचन हनुमान जी के समक्ष उन्होंने ” हनुमान बाहुक ” की रचना की थी।

वर्तमान मंदिर का निर्माण,बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय के द्वारा सन 1900 में किया गया था |

चैत्र माह की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष वाराणसी में हनुमान जयंती पर्व मनाया जाता है जिसमे दुर्गाकुंड के निकट मां दुर्गा मंदिर से संकट मोचक मंदिर तक एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है ।

संकट मोचन मंदिर वाराणसी का इतिहास

history of sankat mochan varanasi 

संकटमोचन मंदिर परिसर में सैकड़ों वर्ष पुराना एक तालाब है। बहुत कम लोगो को ये पता है कि वरुणा और असि नदी के नाम को जोड़कर इस नगरी का नाम पड़ा है वाराणसी | एक समय ये असि नदी कंदवा, कंचनपुर, नेवादा, बटुआपुर, संकटमोचन तालाब समेत 54 तालाबों से होकर गुजरती थी किन्तु वर्तमान में मात्र संकटमोचन और कंचनपुर के ही तालाब अस्तित्व में हैं | संकट मोचन तालाब को बचाकर रखने में मुख्या भूमिका मंदिर प्रशासन की है ।

Also Read :- संकट मोचन हनुमान चालीसा Sankat Mochan Hanuman Chalisa 

संकट मोचन मंदिर में स्थित वन

संकटमोचन मंदिर परिसर में ही लगभग साढ़े पांच एकड़ में फैला अति प्राचीन सघन वनीय क्षेत्र है। कहा जाता है कि इसी वन में गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी जो आज संकटमोचन मंदिर के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध है ।

ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना ठीक उसी स्थान पर हुई जहा गोस्वामी तुलसीदास को पहली बार हनुमान का स्वप्न आया था। गोस्वामी  तुलसीदास द्वारा रचित हनुमानाष्टक में इसी संकटमोचन का उल्लेख भी किया है।

Sankat Mochan Varanasi
Sankat Mochan Varanasi 5 best tourist places in north india

संकट मोचन मंदिर वाराणसी के विषय में सम्पूर्ण वर्णन जानने के लिए click करें …

 

5 best tourist places in north india की यात्रा में third number का teerth वाराणसी के ही निकट स्थित हैं…

vindhyanchal temple : माँ विंध्यवासिनी की a 2 z information

भारत के उत्तरी राज्य उत्तरप्रदेश के प्रयागराज जनपद से 85 किमी,वाराणसी जनपद से 70 किमी और मिर्ज़ापुर से 8 किमी दूर विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के मध्य पवित्र गंगा नदी के किनारे आदिशक्ति भगवती का विन्ध्याचल धाम ( vindhyanchal temple ) है जहाँ आदिशक्ति, माता विंध्यवासिनी के रूप में विराजमान है।

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार आदिशक्ति भगवती अपने पूर्णरूप में कहीं भी विराजित नहीं हैं किन्तु  विंध्याचल में माता के पूरे विग्रह विराजित है। जबकि माता के अन्य शक्तिपीठों में आदिशक्ति देवी के अलग-अलग अंगों का पूजन किया जाता है| इसीलिए 5 best tourist places in north india की यात्रा में माता विंध्यवासिनी का ये शक्तिपीठ अति महत्वपूर्ण teerth है 

माता के भक्त दूर दूर से यहां सिद्धि प्राप्त करने के लिए आते है और यहाँ साधना करते है|

माता सती के जितने भी शक्तिपीठ है, उनमे माता विंध्यवासिनी का ये शक्तिपीठ एक मात्र शक्तिपीठ है जो गंगा नदी के तट पर स्थित है , माता विंध्यवासिनी के मंदिर से कुछ (लगभग 3 किमी) दूर अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी और कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली माता का मंदिर स्थित है |

माता विंध्यवासिनी त्रिकोण यन्त्र पर स्थित है और आदिशक्ति भगवती के तीनों  रूपों अर्थात  महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के रूप में विराजमान हैं।

विंध्याचल मंदिर का इतिहास || vindhyanchal temple history 

श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार जब मथुरा में कंस के कारागार में माता देवकी के गर्भ से आठवी संतान के रूप में भगवान् श्री कृष्ण ने जन्म लिया तो श्री कृष्ण को कंस के हाथों से बचाने के लिए श्री कृष्ण के पिता वसुदेवजी  ने आधी रात में ही यमुना नदी को पार करते हुए गोकुल में अपने चचेरे भाई नन्दजी के घर पहुंचा दिया था तथा वहां  से माता यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्म लेने वाली योगमाया को लेकर मथुरा के कारागार में आ गये ।

जब श्री कृष्ण के मामा कंस को अपनी बहन देवकी की आठवीं संतान के जन्म लेने का समाचार मिला तो कंस, श्री कृष्ण को मारने के लिए कारागार में पहुंच गया। उसने जैसे ही यशोदा के गर्भ से उत्पन्न उस नवजात कन्या को हाथ में उठाकर पत्थर पर पटकना चाहा तो वो कन्या, कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और अपने वास्तविक दिव्य रूप में आते हुए कंस को बताया कि तेरा वध करने वाला इस धरती पर जन्म ले चुका है “ और इतना बताकर वो कन्या अंतर्ध्यान हो गयी |

श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार माता यशोदा के गर्भ से उत्पन्न ये कन्या ही देवी योगमाया है | शिवपुराण में इन्हें माता सती का अंश बताया गया है।

माना जाता है कि संसार में सती माता के जितने भी शक्तिपीठ हैं वहाँ पर  सती माता के शरीर के अंग गिरे थे किन्तु विंध्याचल धाम वो स्थान  है जिसे आदि शक्ती ने पृथ्वी पर अपने जन्म के बाद निवास करने के लिए चुना था।

आदिशक्ति भगवती के भक्तों का ये मानना है कि विंध्यवासिनी(one of 5 best tourist places in north india ),विंध्यांचल पर्वत पर सदैव विराजमान रहती है, ऐसा ही धर्मराज युधिष्ठिर ने भी कहा था |

महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर आदि शक्ति देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग- श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्। अर्थात हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचल पर आप सदैव विराजमान रहती हैं। 

पद्मपुराण में भी माता विंध्यवासिनी का उल्लेख मिलता है।

चैत्र नवरात्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर यहां देश भर से माता के भक्त , माता के दर्शन करने आते हैं |

मां विंध्यवासिनी मंदिर ( vindhyanchal temple )के शीर्ष पर लहराते ध्वज का महत्व

ऐसा माना जाता है कि शरद…….

यदि आप मां विंध्यवासिनी मंदिर ( vindhyanchal temple ) के विषय में सम्पूर्ण वर्णन जानने के लिए click करें …

 

5 best tourist places in north india की यात्रा में fourth number का teerth हैं…

माँ शारदा माई-मैहर देवी | maihar devi के बारे मे a 2 z information

भारत के मध्य में स्थित मध्य प्रदेश राज्य के सतना जनपद में विन्ध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य पिरामिडाकार त्रिकूट पर्वत पर माँ शारदा यानि माँ सरस्वती का विश्व प्रसिद्द मंदिर है जिसे सभी मैहर देवी के नाम से जानते है |

माँ शारदा को मैहर देवी क्यों कहते है 

why maa sharda mai is known as maihar devi ?

एक मान्यता के अनुसार माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा करवाए जा रहे यज्ञ में अपने पति भगवान शिव को न बुलाये जाने से रुष्ट होकर यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए थे |

अपनी पत्नी सती की मृत्यु से क्रोधित हो भगवान शिव माता सती के शव को अपने कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य करने लगे | तांडव नृत्य से माता सती के शव से गले का हार त्रिकूट पर्वत के शिखर पर आ गिरा।

क्योंकि यहाँ माता सती का हार गिरा था इस कारण इस स्थान का नाम पहले माई का हार पड़ा था जो बाद में मैहर हो गया | माता सती का हार गिरने से इस स्थान का महत्व भी माता के अन्य शक्तिपीठों जैसा है ।

जबकि कुछ लोगों के अनुसार मैहर का अर्थ है माई का घर जोकि धीरे धीरे माई का घर से मैहर में बदल गया | 

मैहर देवी (one of 5 best tourist places in north india ) एक ऐसा सिद्ध मंदिर है जहा लाखो लोगो की मनोकामना पूर्ण हुई है और ऐसा कहा जाता है कि माँ शारदा का इससे बड़ा मंदिर और कही नही है , इसीलिए पूरे वर्ष यहाँ मैहर देवी के दर्शन की अभिलाषा लिए उनके भक्त दूर दूर से आते है |

मैहर देवी के दर्शन करने के लिए उनके भक्तों को पर्वत पर बनें 1063 सीढ़ियों पर चढ़ना पड़ता है। मैहर देवी मंदिर तक आप जाने के लिए रोपवे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं|

मैहर देवी यानि माँ शारदा के इस मंदिर की खोज आल्हा उदल ने की थी ,उस समय मंदिर घने वन में था । आल्हा ने यहां 12 वर्षों तक माँ शारदा की कठोर  तपस्या की थी , आल्हा  माँ शारदा को शारदा माई कहकर पुकारते थे इसीलिए आज भी माँ शारदा के अनेक भक्त माँ शारदा को शारदा माई के नाम से ही पुकारते है |

मैहर देवी के बारे में ये कहा जाता है कि सायंकाल माता की आरती होने के बाद जब मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं तब भी यहां मंदिर के भीतर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है । लोगों के अनुसार ये पूजा माँ शारदा माई के परम भक्त आल्हा ही करते है |

maihar-devi-temple

5 best tourist places in north india – maihar devi 

माँ शारदा माई के परम भक्त आल्हा और उदल की कहानी

story of alha udal in hindi

राजा परमार के शासन में जगनिक नाम के एक कवि थे जोकि राजा परमार के राज कवि थे  | कवि जगनिक ने ही आल्हा खण्ड नाम के काव्य की रचना की थी | आल्हा और ऊदल बुन्देलखण्ड के महोबा के दो वीर योद्धा थे जोकि आपस में भाई थे, ये दोनों योद्धा राजा परमार के सामंत थे । आल्हा खंड में आल्हा और उदल दोनों भाईयों की शौर्य गाथा का भली भांति वर्णन किया गया है |

आल्हा खंड में इन दोनों भाहियों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है जिसमे आल्हा उदल की अंतिम लडाई पृथ्‍वीराज चौहान के साथ हुई  थी और चूँकि मां शारदा के परम भक्त आल्हा उदल को मां शारदा का आशीर्वाद प्राप्त था इसलिए पृथ्वीराज चौहान युद्ध में पराजित हुए थे किन्तु इसके पश्चात आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने सांसारिक जीवन से संन्यास लेने का मन बना लिया।

अपने गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा उदल ने पृथ्वीराज को जीवित जाने दिया दिया था।

ऐसा कहा जाता है कि माँ शारदा के कहने पर आल्हा ने अपनी साग ( एक हथियार ) की नोक टेढ़ी करके माँ शारदा को समर्पित कर दी जिसकी नोक को अभी तक कोई सीधा न कर सका है |

क्या आल्हा उदल अमर है

are Alha Udal immortal?

आज भी ये आल्हा उदल मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही मां के…

माँ शारदा माई-मैहर देवी के विषय में सम्पूर्ण वर्णन के लिए यहाँ click करें …

 

यदि आप दिल्ली से है तो आपके ही नगर में है 5 best tourist places in north india की यात्रा का अंतिम teerth …

स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर Akshardham Temple new delhi complete a 2 z tour guide

अक्षरधाम मंदिर Akshardham Temple -नई दिल्ली स्थित अक्षरधाम मंदिर अर्थात स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर ,संसार के सबसे  विशाल हिंदू मन्दिर परिसरों मे से एक है जोकि १०० एकड़ भूमि मे विस्तृत है , नेहरू प्लेस के पास यमुना नदी के तट पर स्थित है  इस मंदिर को 6 नवंबर 2005  में सार्वजनिक रूप से जनसाधारण के लिए खोला गया था

अक्षरधाम मंदिर को ज्योतिर्धर भगवान स्वामिनारायण की पुण्य स्मृति में बनाया गया है, अक्षरधाम मंदिर को 26 दिसंबर 2007 को 2 श्रेणियों मे गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिका‌र्ड्स में सम्मलित किया गया था । जिसमे एक रिकॉर्ड , अप्रैल वर्ष 1971 से वर्ष 2007 के मध्य 713 मंदिरों का निर्माण का है ,ये मंदिर  5 महादीपों पर बनाये गये थे।

और दूसरा रिकॉर्ड स्वामीनारायण अक्षरधाम मन्दिर के विशालतम हिंदू मन्दिर परिसर के लिए है।

अक्षरधाम मंदिर , भारतीय हिंदू संस्कृति के गौरवपूर्ण इतिहास , हिन्दू धर्म महानता, आध्यात्मिकता, समृद्धि और हिंदू धर्म और संस्कृति से जुड़ी वास्तुकला जैसे महत्वपूर्ण पक्षो को प्रदर्शित करता है.

अक्षरधाम मंदिर की वास्तुकला

Architecture of Akshardham Temple

अक्षरधाम मन्दिर (one of 5 best tourist places in north india ) के निर्माण में लगभग पांच वर्ष का समय लगा था और श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था के प्रमुख स्वामी महाराज के नेतृत्व में इस मंदिर को बनाया गया था , अक्षरधाम मन्दिर के निर्माण में बलुआ पत्थरों और राजस्थानी गुलाबी और सफेद संगमरमर के पत्थरों का प्रयोग किया गया है जबकि स्टील, लोहे और कंक्रीट का प्रयोग इस मंदिर को बनाने में नहीं किया गया है ।

अक्षरधाम मन्दिर के निर्माण में 11,000 से अधिक  कारीगर और स्वयंसेवक लगे थे

अक्षरधाम मंदिर लगभग 83,342 वर्ग फुट भूमि पर बना हुआ है और 141 फुट ऊंचा  316 फुट चौड़ा और 356 फुट लंबा है, मंदिर मे साधुओं, महापुरूषों और आचार्यों के 20,000  मूर्तिया लगी हुई हैं और 234 नक्काशीदार खंभे और 9 अलंकृत गुंबद बने हुए है और साथ ही 3000 टन भार वाले 148 हाथियों की मूर्ती लगी हैं , मंदिर के केंद्रीय गुंबद के नीचे स्वामीनारायण की 11 फुट ऊंची मूर्ति स्थापित और इसके साथ ही मंदिर मे सीता राम, राधा कृष्ण, शिव पार्वती, और लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां भी लगी हुई हैं और ये सभी मूर्तियाँ पंच धातू से निर्मित हैं

अक्षरधाम मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि कहा जाता है कि ये मंदिर बिना किसी क्षति के 1000  वर्ष से भी अधिक रहेगा

अक्षरधाम मंदिर Akshardham Temple

अक्षरधाम मंदिर में प्रवेश शुल्क 

Entry Fee to Akshardham Temple

अक्षरधाम मंदिर परिसर में प्रवेश निःशुल्क है 

अक्षरधाम मंदिर का फव्वारा शो 

Akshardham Temple musical fountain show

Akshardham Temple अक्षरधाम मंदिर

अक्षरधाम मंदिर (one of 5 best tourist places in north india ) में प्रतिदिन संध्याकालीन संगीतमय फव्वारा शो (musical fountain show)  का आयोजन किया जाता है जिसे सहज आनंद मल्टीमीडिया वाटर शो भी कहा जाता है ,जिसमे कृत्रिम लाइटों के द्वारा जल और मंदिर के भवन पर चलचित्रों के द्वारा अनेकों कहानिया दिखाई जाती हैं जैसे भगवान, मनुष्य और प्रकृति के बीच परस्पर संबंध ,जन्म और मृत्यु चक्र के विषय आदि का वर्णन किया जाता है

यह शो 24 मिनट चलता है, जिसमे उपनिषद से जुड़ी कहानियाँ विभिन्न रंगों के लेजर,पानी की तेज धारों के साथ ये शो बहुत आकर्षक लगता है । 

इस संगीतमय फव्वारा शो (musical fountain show) को देखने…

स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर के विषय में सम्पूर्ण वर्णन के लिए यहाँ click करें …

साथियों हम पूरी आशा करते हैं कि आपको maihindu.com के द्वारा बताये गए 5 best tourist places in north india से north india temple tour सरल हो जायेगा और आप teerth के साथ एक धार्मिक पर्यटन भी कर सकेंगे |

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