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कुंडली मे शनि का प्रभाव kundli me shani ke prabhav-12 effect of saturn in horoscope
kundli me shani ke prabhav: कुंडली मे शनि का प्रभाव अर्थात फल अन्य सभी ग्रहों की अपेक्षा अधिक समय तक रहता है क्योंकि शनि बहुत मन्द गति से चलते है। ये एक राशि से दूसरी राशि मे जाने के लिए ढाई वर्ष ले लेते हैं । शनि ग्रह को सूर्य का पुत्र कहा गया है और साथ ही काल भैरव अर्थात न्याय का स्वामी माना गया है ।
शनि मृत्युलोक यानि पृथ्वी के न्यायाधीश भी कहलाते हैं और शनि का न्याय छाया ग्रह राहु एवं केतु के द्वारा पापियों को दंड देने से पूर्ण होता है।
आइये हम सब जानने का प्रयास करते हैं कुंडली मे शनि की स्थिति
कुंडली मे शनि का प्रभाव -kundli me shani ke prabhav
effect of saturn in horoscope
- कुंडली का दशम भाव कर्म का भाव है और काल पुरुष की कुंडली मे शनि दशम व एकादश भाव का स्वामी कहा गया है , शनि एक दृष्टिकारक ग्रह जिसके द्वारा व्यक्ति स्वयं और दूसरों का सही प्रकार से आंकलन कर पाता है। शनि के द्वारा ही व्यक्ति अपने और दूसरों के गुण-दोषों का और भले-बुरे कर्मों को पहचान पाता है। शनि ग्रह ही व्यक्ति के भले-बुरे कर्मों को तोलकर उनके अनुरूप शुभाशुभ फल देता है।
- शनि ही मोक्षकामी, तपस्वी एवं व्यक्ति के शुभाशुभ कर्मों का फलदाता है। भले-बुरे के भेद से कर्मों के फल कोमल भी होते हैं और कठोर भी, अतः शनि की प्रकृति में कोमलता एवं कठोरता दोनों हैं। अरुण संहितानुसार शनि की कोमलता केतु और कठोरता राहु है ।
- अनेक ज्योतिष के विद्वानों के अनुसार शनि एक विशाल सर्प है जिसका सिर राहु है और पूंछ केतु है। छाया ग्रह राहु एवं केतु के माध्यम से शनि शुभाशुभ फल विभिन्न भावों में पहुंचाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु, शनि जिस भाव मे हो उस भाव से एक, दो या तीन पूर्व के भावों में हो अर्थात केतु से शनि प्रथम, द्वितीय अथवा तृतीय भावों में आगे हो तो शनि शुभ फल देता है और व्यक्ति की सहायता करता है।
- यदि केतु शनि जिस भाव मे हो उस भाव के बाद वाले भावों में हो, तब शनि अत्यंत अशुभ विषाक्त फल देने वाला होता है। यदि शनि शुभ राशि का होकर द्वितीय, पंचम, नवम एवं द्वादश भाव में हो, तब वह कभी भी अशुभ फल नहीं देता।
- यदि शनि के पूर्ववर्ती भावों में कहीं भी स्थित होकर शुक्र, शनि को देखे तो वह व्यक्ति के संबंधियों, उसके घर और शनि द्वारा शासित वस्तुओं पर दुष्प्रभाव डालता है।
- शनि सामान्यतः बच्चों को बुरा फल नहीं देता, क्योंकि वह तपस्वी ग्रह है, किंतु गुरु-शनि और बुध-मंगल साथ-साथ हों, तब बच्चे भी शनि का अशुभ प्रभाव झेलते हैं।
- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि मंगल-बुध साथ-साथ हों, तब बच्चों पर विशेष रूप से बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि शनि अशुभ हो तो राहु उसके अशुभ फल को स्वयं अपने ऊपर ले लेता है।
- यदि शनि राहु अथवा केतु के साथ युति कर रहा हो तो उसका फल अत्यंत अशुभ हो जाता है। यदि चन्द्रमा और राहु एक-एक करके या इकट्ठे ही बारहवें भाव में हों तो निश्चय ही अशुभ फल देते हैं।
- जब शनि के साथ दो या दो से अधिक अशुभ ग्रह एक ही भाव में हों, तब शनि अशुभ फल नहीं देता, किंतु इस दशा में शुभ भी नहीं होता। ऐसी स्थिति में लोहे, इस्पात से बनी वस्तुएं और शनि से संबंधित अन्य वस्तुएं दान में देना हितकर है।
- शनि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भावों में स्त्री ग्रहों के साथ स्थित होने पर राहु-केतु जैसा आचरण करता है और बुरे फल देता है। शनि अपने शत्रु ग्रहों और स्त्री ग्रहों को साथ-साथ देखता हो तो अपने शत्रु ग्रहों के प्रभाव से विपरीत फल उत्पन्न करता है ।
- यदि शनि लग्न में हो तो वह मंगल एवं सूर्य के फल बिगाड़ता है। यदि शनि तृतीय ‘भाव में हो तो मंगल के फल तथा शनि चतुर्थ भाव में हो, तब चन्द्रमा के फल बिगाड़ता है। शनि पंचम भाव में बैठकर सूर्य के तथा अष्टम भाव में बैठकर मंगल के फल बिगाड़ता है। शनि गुरु के भावों यानि नवम एवं द्वादश में बैठकर कभी भी अशुभ फल नहीं देता है किन्तु गुरु शनि के दशम भाव में बैठकर दुष्फल उत्पन्न करता है।
- दशम भाव में मंगल शुभ होता है किंतु शनि तृतीय भाव में बैठकर व्यक्ति को निर्धन कर देता है।
शनि की अशुभता दूर करने के सामान्य उपाय
- शनिवार का व्रत रखें,
- भैरो की पूजा करे
- भैरो के मन्दिर में शराब चढ़ाएं
- रोटी में सरसों का तेल लगाकर कुत्तों या गाय को खिलाएं
- शराब और मांसाहार से दूर रहे
- शनि की निम्न वस्तुओं का शनिवार के दिन दान करे
शनि का दान
- लोहा तथा इस्पात
- कोयला,
- पत्थर, नमक,
- पीपरमेन्ट,
- साबुत उड़द की दाल
- सरसों का तेल,
- स्पिरिट और
- शराब ।
किसको करें शनि का दान
- मोची,
- लुहार,
- बढ़ई,
- सफाई कर्मचारी
निष्कर्ष :
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कुंडली मे शनि का प्रभाव kundli me shani ke prabhav-12 effect of saturn in horoscope
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