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famous kabir das dohe-guru govind dou khade etc कबीरदास के16 प्रसिद्द दोहे in hindi
famous kabir das dohe: कबीरदास भारत के एक ऐसे संत थे जिनको भारतीय समाज में बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. संत कबीरदास के दोहे मानवीय मूल्यों पर आधारित हैं और जीवन के प्रति एक सकरात्मक सोच और धरती से जुड़े दृष्टिकोण उत्पन्न करने वाली है ,कबीरदास ने अपनी वाणी और अपने कथनों से आम जन मानस को सत्यमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है . कबीर दास के दोहे भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व में प्रख्यात हैं जिन्हें पढकर कोई भी मनुष्य अपने जीवन को सही मार्ग पर ला सकता है.
आइये जानते हैं कुछ famous kabir das dohe जैसे dohe-guru govind dou khade etc कबीरदास के दोहे अर्थ सहित
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि यदि हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का मार्ग बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।
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यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष विष से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। यदि अपना शीश यानि सर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।
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सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> यदि मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और संसार के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।
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famous kabir das dohe-guru govind dou khade etc कबीरदास के दोहे
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ स्वंम को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
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बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूरऊँचाई पे लगता है। इसी प्रकार यदि आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई लाभ नहीं है।
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निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं कि निंदकसर्वदा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को सर्वदा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग यदि आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप सरलता से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग मनुष्य का स्वभाव शीतल बना देते हैं।
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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने स्वंम अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई मनुष्य नहीं है। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ कबीरदास के इस दोहे का अर्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन यदि आप स्वंम के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई मनुष्य नहीं है।
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दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> दुःख में हर मनुष्य ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। यदि सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।
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माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी।
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पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।
देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले के समान हैं जो पल भर में बनती हैं और पल भर में समाप्त। जिस दिन आपको सच्चे गुरु के दर्शन होंगे उस दिन ये सब मोह माया और सारा अंधकार छिप जायेगा।
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चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि चक्की के पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता।
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मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार ।
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। जैसे आज आप युवा हैं कल आप भी वृद्ध हो जायेंगे और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कली, कल फूल बनेगी।
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famous kabir das dohe-guru govind dou khade etc कबीरदास के दोहे
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे।
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ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर प्रकाश होता है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, यदि ढूंढ सको तो ढूढ लो।
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जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीँ धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है, और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है।
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जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश ।
जो है जा को भावना सो ताहि के पास ।
कबीरदास के इस दोहे का अर्थ :–> कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बाद भी दोनों कितने पास है। जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा स्वंम कमल के पास आ गया हो। वैसे ही जब कोई मनुष्य ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं।
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