Are gandmool Nakshatras really inauspicious -1? गंडमूल नक्षत्र

Are gandmool Nakshatras really inauspicious? 

गंडमूल नक्षत्र क्या सच में अशुभ होते हैं ? 

साथियों जब भी हमे ये पता चलता है कि हमारे घर परिवार में जन्म लेने वाला बालक या बालिका का जन्म gandmool nakshatra (गंड मूल नक्षत्र ) में हुआ है तो हम चिंतित हो जाते है कि अब क्या होगा, भले ही हम gandmool nakshatra (गंड मूल नक्षत्र ) के बारे में कुछ भी न पता हो लेकिन इनका नाम ही ऐसा है कि हम डर जाते है |

जबकि gandmool nakshatra (गंड मूल नक्षत्र ) जन्म लेने वाला शिशु यदि गंड मूल नक्षत्र के शुभ प्रभाव में है तो ये आगे चलकर जिस भी क्षेत्र में कार्यरत होता है वहाँ चली आ रही परम्परा से हटकर कुछ नया प्रारंभ करता है , ऐसे शिशु की सोच सब से हटकर होती है किन्तु यदि गंड मूल नक्षत्र का अशुभ प्रभाव है तो ऐसा शिशु अपने साथ साथ अपने सगे संबंधियों के लिए भी हानिकारक होता है, वो रोगी, क्रोधी भी होता है |

हिन्दू धर्म में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सामान्यतः यही माना जाता है कि gandmool nakshatra (गंड मूल नक्षत्र ) में जन्म लेने वाले बालक / बालिका या तो स्वंम अपने लिए अथवा अपने सगे संबंधियों के लिए अशुभ होते है और इसलिए जब किसी घर में किसी शिशु का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में होता है तो ये कहा जाता है कि ये बालक / बालिका को गंडमूल दोष लगा हुआ है ।

इस gandmool nakshatra (गंड मूल नक्षत्र ) के दोष या अशुभता को दूर करने के लिए gandmool nakshatra (गंड मूल नक्षत्र ) में जन्म लेने वाले बालक / बालिका को या उसके सगे संम्बंधियों को gandmool nakshatra (गंड मूल नक्षत्र ) की शांति के लिए पूजा करानी पड़ती है जिससे आगे चलकर शिशु को या उसके माता-पिता या भाई-बहिनों को कोई कष्ट न हो |

gandmool nakshatra (गंड मूल नक्षत्र ) की पूजा कराने के लिए आपको ऐसा ब्राह्मण ढूँढना चाहिए जिसे इस गंड मूल नक्षत्र की पूजा का भलीभांति ज्ञान हो |

(gandmool nakshatra in hindi)

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Are gandmool Nakshatras really inauspicious

gandmool nakshatra kya hota hai ?

गंडमूल नक्षत्र क्या होता है? गंडमूल क्या होता है?

मित्रो ब्राह्मांड में 12 राशियाँ और 27 नक्षत्र होते हैं , एक राशि में सवा दो नक्षत्र पड़ते है और एक नक्षत्र में 4 पद / 4 चरण होते है, इस प्रकार हम कह सकते है कि एक राशि में 9 पद / 9 चरण होते हैं |

सबसे पहली राशि मेष राशि होती है जिसमे पहला नक्षत्र अश्वनी , दूसरा नक्षत्र भरणी और तीसरा कृतिका होता है , हम जानते है कि किसी भी राशि का निर्माण ,नक्षत्रों के 9 पद से मिलकर हुआ होता है और अब मेष राशि में अश्वनी नक्षत्र के चारों पद / चरण , भरणी के चारों पद / चरण और कृतिका नक्षत्र का 1 पद / चरण आता है |

अब आप सोच रहें होंगे कि जब मेष राशि में कृतिका नक्षत्र का मात्र 1 पद ही आता ही तो शेष 3 पदों का क्या हुआ ?

कृतिका नक्षत्र के इन्ही 3 पदों से वृष राशि प्रारंभ होती है और कृतिका नक्षत्र के बाद रोहणी नक्षत्र के 4 पद आ जाते है , कृतिका के 3 पद और रोहणी के 4 पद लेकर 7 पद हो गये और हम जानते है कि सभी राशि 9 पदों से मिलकर बनती है इसलिए वृष राशि में कृतिका और रोहणी के बाद मृगशिरा नक्षत्र के 2 पद भी आ जाते है और इसप्रकार वृष राशि बन जाती है |

अब मृगशिरा नक्षत्र के शेष 2 पदों से मिथुन राशि प्रारंभ होती है और इसी प्रकार ये क्रम आगे बढता है और सभी 12 राशियाँ बनती है|

अब इन राशियों में जो राशि और नक्षत्र एक साथ ही प्रारंभ होते है जैसे मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र, सिंह राशि और मघा नक्षत्र, धनु राशि और मूल नक्षत्र तब इन नक्षत्रों को मूल नक्षत्र कहा जाता है और जब इन नक्षत्रों में चंद्रमा आते है और उस समय जब कोई शिशु जन्म लेता है तो उस शिशु को अथवा उसके सगे संबंधियों को मूल दोष लगता है |

ठीक इसी प्रकार जो राशि और नक्षत्र एक साथ समाप्त होते है जैसे कर्क राशि और अश्लेषा नक्षत्र, राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र, मीन राशि और रेवती नक्षत्र तब इन नक्षत्रों को गंड नक्षत्र कहा जाता है और जब इन नक्षत्रों में चंद्रमा आते है और उस समय जब कोई शिशु जन्म लेता है तो उस शिशु को अथवा उसके सगे संबंधियों को गंड दोष लगता है |

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गंडमूल नक्षत्र का दोष क्यों लगता है ? शांति के उपाय

Remark : यदि आप हमसे कुंडली दिखवाना चाहते हैं या कुंडली में किसी दोष जैसे :- पितृ दोष , कालसर्प योग , मंगली दोष , विवाह में विलंब , गुरु राहू चांडाल योग इतियादी के विषय में जानना चाहते है या इनका पूजन करना चाहते है तो  पं  लोकेन्द्र पाठक से 8533087800 पर संपर्क कर सकते हैं  ।

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