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प्रभु राम-अयोध्या से लंका वनवास के विभिन्न पड़ाव  

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प्रभु राम की वनवास यात्रा के विभिन्न पड़ाव 

What are the places Rama walked according to Ramayana?

तमसा नदी :

अयोध्या से दक्षिण दिशा में लगभग 20 किमी दूर तरडीह नामक ग्राम है जहाँ तमसा नदी बहती है वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान् श्री राम ने  लक्ष्मण जी और माँ सीता के साथ अपनी वनवास यात्रा में इसी तमसा नदी को नाव से पार किया था |

तमसा नदी वर्तमान के अम्बेडकर नगर जनपद से निकलकर  आज़मगढ़ जनपद होते हुए बलिया जनपद के पश्चिम में 89 किमी की यात्रा करते हुए गंगा नदी में मिलती है।

ऐसा माना जाता है की तमसा नदी के निकट ही भगवान् राम के पिता राजा दशरथ के हाथों श्रवण कुमार की मृत्यु हुई थी।

श्रृंगवेरपुर तीर्थ:

तमसा नदी पार करके भगवान् राम श्रृंगवेरपुर पहुंचे जिसे वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है ,सिंगरौर गंगा के उत्तरी तट पर एक छोटी पहाड़ी पर बसा हुआ है।

ये स्थान प्रयागराज से उत्तर-पश्चिम की दिशा में लगभग 35.2 कि.मी. (22 मील) दूर और अयोध्या से लगभग 80 मील दूर है।श्रृंगवेरपुर का रामायण में भी वर्णन ,ये वो स्थान है  जहां वन जाते समय राम, लक्ष्मण और सीता एक रात्रि के लिए ठहरे थे। श्रृंगवेरपुर में जिस घाट पर भगवान् श्री राम ,लक्ष्मण जी और माँ सीता के साथ नाव पर चढ़े थे वह घाट आज भी है और इस घाट को रामचौरा के नाम से जाना  जाता है | श्रृंगवेरपुर गंगा नदी के तट पर स्थित वो स्थान था जहाँ भगवान् राम की भेंट निषाद राज से हुई थी | भगवान् राम ने इसी स्थान से साथी सुमंत को वापस अयोध्या भेज दिया था और स्वंम निषादराज की सहायता से गंगा नदी पार की थी | इस स्थान पर आज भी निषादराज का किला स्थित है |

राजा दशरथ ने श्रृंगवेरपुर में ही श्रृंगी ऋषि के द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था जिसके फलस्वरूप राजा दशरथ के यहां भगवान श्री राम सहित चार पुत्रों का जन्म हुआ था।

श्रृंगवेरपुर चूँकि भगवान राम के जन्म से भी जुड़ा है इसलिए इसे ‘संतान तीर्थ’ भी कहते है आज भी संतान प्राप्ति की कामना से देश अनेको लोग यहां पूजा-अर्चना के लिए आते है , प्रतिवर्ष रामनवमी के दिन यहां भव्य मेला भी लगता है।

कुरई गाँव :

सिंगरौर (श्रृंगंवेरपुर) से आगे बढ़ते हुए भगवान् राम, गंगा नदी पार कर कुरई नाम के गाँव में रुके थे। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर श्रृंगि ऋषि का आश्रम स्थित था, जिनसे राजा दशरथ की कन्या शांता ब्याही थी। शांता के नाम पर प्रसिद्ध एक मंदिर भी यहां स्थित है। यहां एक छोटा-सा राम मंदिर बना है। श्रृंगवेरपुर के आगे चलकर श्रीरामंद्रजी प्रयाग पहुचे थे।

प्रयागराज:

कुरई से आगे बढ़ते हुए भगवान् राम, लक्ष्मण जी और पत्नी सीता सहित प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम पर पहुँचे और ऋषि भारद्वाज के पवित्र आश्रम में पहुंचे। ऋषि भारद्वाज ने भगवान् राम को चित्रकूट के पर्वत के निकट रहने का सुझाव दिया | जिसके बाद श्रीराम ने , लक्ष्मण जी और पत्नी सीता सहित यमुना नदी को पार किया और 2 दिनों तक चलते हुए चित्रकूट पहुंचे|

चित्रकूट :

मंदाकिनी नदी के किनारे पर चित्रकूट हिन्दू धर्म के प्राचीनतम तीर्थस्थलों में से एक है चित्रकूट वह स्थान है, जहाँ राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुँचते हैं। तब जब दशरथ का देहान्त हो जाता है। भारत यहाँ से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं । चित्रकूट उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में प्राकृतिक, शांत और सुन्दर क्षेत्र है।

भगवान राम ने अपनी भार्या सीता और लक्ष्मण के साथ अपने 14 वर्षों के वनवास में से 11 वर्ष चित्रकूट में ही व्यतीत किये थे। यहाँ भगवान् के वनवास काल से जुड़े अनेक स्थान है जैसे :-

रामघाट : वो घाट जहाँ प्रभु राम नित्य स्नान करते थे |

जानकी कुण्ड :मंदाकिनी नदी के किनार स्थित जानकी कुण्ड जहाँ माता जानकी स्नान करती थीं।

स्फटिक शिला : जहाँ बैठ राम और सीता चित्रकूट का सौंदर्य निहारते थे। मंदाकिनी नदी के किनार जानकी कुंड से कुछ ही दूर ये शिला स्थित है। इस शिला पर माता सीता के पैरों के चिन्ह अंकित हैं।  भरतकूप : अत्रि ऋषि के कहने पर भरत ने भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए भारत की सभी नदियों से जल एकत्रित कर रखा था किन्तु जब भगवान राम ने भरत के साथ अयोध्या लौटने से मना कर दिया तो भरत ने दुखी होकर सभी नदियों के जल को वहीं के कुए में डाल दिया और मात्र भगवान राम की खड़ाऊँ लेकर वापस अयोध्या चले गए। तभी से इस स्थल का नाम भरत कूप पड़ा।

ठीक इसी प्रकार यहाँ श्रीराम से जुड़े अनेक स्थान है |

सतना:

चित्रकूट के पास ही अत्रि ऋषि का आश्रम था जोकि सतना ,मध्यप्रदेश राज्य में पड़ता है यहाँ ‘रामवन’ नामक स्थान पर भी भगवान् राम  रुके थे जहाँ ऋषि अत्रि का एक और आश्रम था।                   `        

दण्डकारण्य:

चित्रकूट से आगे बढ़ते हुए गवान् राम घने वन में पहुंच गए। इस वन को उस काल में दण्डकारण्य कहा जाता था। दण्डकाराण्य बहुत बड़ा वनीये क्षेत्र था जिसमे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ ,महाराष्ट्र , आंद्रप्रदेश और  उड़ीसा राज्य का बड़ा भूभाग आता था। दण्डकारण्य वन कितना बड़ा था इस बात को ऐसे समझे कि उड़ीसा की महानदी से महाराष्ट्र में गोदावरी नदी तक का क्षेत्र दण्डकारण्य था। आन्ध्रप्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर बसा एक नगर भद्राचलम है । यह नगर सीता-रामचन्द्र मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है जोकि भद्रगिरि पर्वत पर बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि भगवान् राम  ने अपने वनवास के समय कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही व्यतीत किये थे। दण्डकारण्य के आकाश क्षेत्र में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दण्डकारण्य में आ गिरे थे।

पंचवटी नासिक :

भगवान् राम और गिद्धराज जटायु की मैत्री स्थल है पंचवटी नासिक | दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद भगवान् राम  अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षे‍त्र में है जो गोदावरी नदी के तटीय क्षेत्र पर बसा है। यहीं पर राम-लक्ष्मण ने राक्षस खर व दूषण के साथ युद्ध किया और उनका वध किया था। । श्री राम और लक्ष्मण के सौन्दर्य से मोहित शूर्पणखा इसी स्थान पर आई थी और श्री राम और लक्ष्मण से विवाह निवेदन किया था जिसे श्रीराम और लक्ष्मण जी ने ठुकरा दिया जिसके बाद वो श्री राम,लक्ष्मण और सीता जी को परेशान करने लगी तब लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा की नाक काट दी थी। वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड में पंचवटी नासिक का मनोहारी वर्णन मिलता है।

सर्वतीर्थ:

जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई थी , ये स्थान नासिक जनपद से 56 किमी दूर इगतपुरी तहसील के ताकेड गाँव में स्थित है । नासिक क्षेत्र में ही प्रभु राम ने मारीच और राक्षस खर व दूषण के वध किया था जिसके बाद रावण ने सीता का हरण किया और जब माता सीता की रक्षा हेतु जटायु आया तो जटायु का भी वध किया | गिद्धराज जटायु की स्मृति में इसी ‘सर्वतीर्थ’ नामक से जुड़ी हुई है | इसी स्थान पर मृत्यु से पूर्व जटायु ने सीता माता के बारे प्रभु राम को बताया था | जटायु की मृत्यु के बाद प्रभु राम ने गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार किया और अपने पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था।

पर्णशाला:

पर्णशाला (जिसे ‘पनशाला’ या ‘पनसाला’ भी कहते हैं) आंध्रप्रदेश राज्य के खम्माम जनपद के भद्राचलम में गोदावरी नदी के तट पर स्थित एक गाँव है | पर्णशाला भद्राचलम नगर से 32 किमी दूर स्थित है।
श्रीराम ने लक्ष्मण जी और माता सीता के साथ अपने 14 वर्ष के वनवास का कुछ भाग यहां बिताया था। भगवान् राम ने पर्णशाला के जंगलों में अपनी पत्नी के लिए एक झोपड़ी का निर्माण किया। गांव के करीब एक धारा है और स्थानीय लोगो का मानना हैं कि माता सीता यहां स्वंम स्नान करती थीं और इस धारा में अपने कपड़े धोया करती थीं।

पर्णशाला में ही रावण ने अपना पुष्पक विमान उतारा था और इस स्थल पर ही रावण ने सीताजी को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती इसी स्थान से छोड़ी थी इसीलिए पर्णशाला को वास्तविक हरण का स्थल माना जाता है। पर्णशाला में राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।

तुंगभद्रा:

सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद भगवान् राम -लक्ष्मण माता सीता की खोज में तुंगभद्रा नदी और कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए । रामायण में तुंगभद्रा नदी को पंपा के नाम से जाना जाता था। पम्पा ब्रह्माजी की पुत्री थी जिन्होंने भगवन शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था और पम्पा की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान् शिव ने पम्पा से विवाह किया और पंपापति कहलाये | तुंगभद्रा नदी अर्थात पम्पा नदी को एक पवित्र नदी माना जाता है | तुंगभद्रा नदी की उत्पत्ति तुंगा एवं भद्रा नदियों के मिलन से हुई है। तुंगभद्रा नदी और कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर भगवान् राम ने माता सीता की खोज की थी |

शबरी का आश्रम :

शबरी आश्रम के स्थान के बारे में कुछ मतभेद देखने को मिलते है जैसे कुछ लोगों के अनुसार

  1. माता शबरी का वह आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में स्थित है। महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित है ये आश्रम , जिसके चारों ओर सुंदर प्राकृतिक वातावरण है इस स्थान को पहले शबरीनारायण कहा जाता था जो बाद में शिवरीनारायण के रूप में जाना जाने लगा | शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जनपद में आता है। यह स्थान बिलासपुर से 64 और रायपुर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम और लक्ष्मण धनुष बाण लिये विराजमान हैं। मंदिर के पुजारी व अन्य स्थानीय लोगों के अनुसार श्रीराम और लक्ष्मण जी शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे।
  2. वहीँ कुछ के अनुसार सुरेबान बेलगाँव कर्नाटक में स्थित है,शबरी आश्रम | रामदुर्ग से 14 कि.मी. उत्तर में गुन्नगा गाँव के पास सुरेबान है। जोकि शबरी वन का ही अपभ्रंश है। आश्रम के निकट बेरी वन है जिसमे आज भी मीठे बेर होते हैं। यहाँ शबरी माँ की पूजा वन शंकरी, आदि शक्ति तथा शाकम्भरी देवी के रूप में की जाती है। लोगों के अनुसार यहीं श्रीराम व शबरी माँ की भेट हुई थी।

किन्तु अधिकांशतः लोगों का मानना है कि

  1. ऋष्यमूक पर्वत जाने से पूर्व वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम गए थे , पुराने समय में तुंगभद्रा नदी को ही ‘पम्पा’ बोला जाता था |  इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ ‘रामायण’ के अनुसार हम्पी , वानरों के राज्य किष्किंधा की राजधानी था | केरल का प्रसिद्ध ‘सबरिमलय मंदिर’ तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है और इसे ही वास्तविक शबरी आश्रम कहा जाता है |

ऋष्यमूक पर्वत :

मलय पर्वत तथा चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। ऋष्यमूक पर्वत ,वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जनपद बेल्लारी में स्थित है। यहां श्रीराम ने  हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और बाली का वध करके सुग्रीव को उनकी पत्नी और राज्य दिलवाया | यहाँ से निकट एक पर्वत को ‘मतंग पर्वत’ माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जोकि हनुमानजी के गुरु थे।

कोडीकरई :

भगवान् राम  ने हनुमान और सुग्रीव की सहायता से वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े।

कोडीकरई में भगवान् राम की सेना ने पड़ाव डाला और सभी के साथ एकत्रित हो कर विचार विमर्ष किया। किन्तु राम की सेना ने कोडीकरई के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब भगवान् राम  की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।

रामेश्वरम:

रामायण के अनुसार भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व शिवलिंग स्थापित करके भगवान शिव की विजय कामना के साथ पूजा की थी। रामेश्वरम में विराजित भगवान् शिव ने प्रभु राम की विजय कामना पूर्ण की और वो राम के ईश्वर कहलाये अर्थात रामेश्वरम कहलाये |यह वही स्थान है जहाँ  भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए हनुमान जी और वानर सेना के साथ पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिसपर चढ़कर भगवान् राम अपनी सेना के साथ लंका गये और लंका पर विजय प्राप्त की |

( रामेश्वरम / धनुषकोटि के विषय में और अधिक जानने के लिए पढ़े प्रभु रामेश्वरम,तमिलनाडु )

धनुषकोटी :

ऐसा कहा जाता है की श्रीराम तीन दिनों तक श्रीलंका जाने का सबसे छोटा मार्ग तलाशते रहे और 3 दिन बाद भगवान् राम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से सबसे कम दूरी पार करके श्रीलंका पहुंचा जा सकता था | भगवान् राम ने उक्त स्थान से नल और नील तथा वानर सेना की सहायता से लंका तक विशाल समुद्र में सेतु का निर्माण किया जिसे आज सारा संसार रामसेतु के नाम से जानता है | इस स्थान को धनुषकोटी  कहा गया क्योंकि यहां जो रामसेतु बनाया गया, उसका आकार मार्ग धनुष के समान है। ये पूरा क्षेत्र मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत आता जाता है। धनुषकोडी में अनेक स्थानों पर समुद्र का जल इतना कम है की नीचे की भूमि स्पष्ट दिखाई देती है। धनुषकोटी ( या धनुषकोडी ) की श्रीलंका सीमा से दूरी मात्र लगभग 18 मील रह जाती है।

नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला :

ये अंतिम स्थल है जहाँ प्रभु राम, माता सीता को लेने आए थे | वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था और नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य श्री लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगे तथा गुफाएँ है जहाँ रावण का साम्राज्य था क्योंकि यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है जो रामायण कालीन सिद्ध होता है |

श्रीलंका में नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका और खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की भी पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। वर्तमान में भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णन किया गया है|

 

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