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kabeer ke dohe in hindi 43 कबीर जी के दोहे हिन्दी मे अर्थ सहित

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kabeer ke dohe in hindi 43 कबीर जी के दोहे हिन्दी मे अर्थ सहित

kabeer ke dohe in hindi :कबीर जी के दोहे ज्ञान का भंडार होते है इस पोस्ट मे आप Top 43 कबीर जी के दोहे हिन्दी मे अर्थ सहित पढ़ेंगे

आइए पढ़ते हैं

kabeer ke dohe in hindi

कबीर जी के दोहे हिन्दी मे अर्थ सहित

1 .

कबीरा जब हम जन्म हुए, जग हँसे हम रोये,

ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि जब जन्म हुआ था तब सब प्रसन्न थे और हम रो रहे थे । पर कुछ ऐसा काम जीवन रहते करके जाओ कि जब हम मरें तो सब रोयें और हम हँसें ।

 2.

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर दास जी कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो। जीवन बहुत छोटा होता है यदि पल भर में समाप्त हो गया तो क्या करोगे।

3.

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय

मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर दास जी कहते कि हे परमात्मा तुम मुझे मात्र इतना दो कि जिसमें मेरे गुजरा चल जाये। मैं भी भूखा न रहूँ और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।

4.

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

5.

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।

हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> रात नींद में नष्ट कर दी – सोते रहे – दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के सामान बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया – कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा? एक कौड़ी

6.

आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।

अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया – तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई – प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा? पहले जागरूक न थे – ठीक उसी प्रकार जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करें और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल नष्ट कर जाएं

7.

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।

एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं – अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान की जागृति को प्राप्त कर प्रभु का नाम लो।सजग होकर प्रभु का ध्यान करो।वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?

8.

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> जब मैं अपने अहंकार में डूबा था – तब प्रभु को न देख पाता था – लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया – ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।

9.

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय

यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर दास जी कहते है यदि हमारा मन शीतल है तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता। यदि अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है।

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10.

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय

जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते कि सुख में भगवान को कोई याद नहीं करता लेकिन दुःख में सभी भगवान से प्रार्थना करते है। यदि सुख में भगवान को याद किया जाये तो दुःख क्यों होगा।

11.

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।

पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।

कबीर दोहे का अर्थ:–> मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो, उन्हें तुम अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई न खाएगा।

12.

माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।

आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा अनेक बार कह चुके हैं।

13.

साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं

धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर दास जी कहते कि साधू सर्वदा करुणा और प्रेम का भूखा होता और कभी भी धन का भूखा नहीं होता। और जो धन का भूखा होता है वह साधू नहीं हो सकता।

14.

कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

15.

तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।

सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

16.

कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार

साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।

कबीर दोहे का अर्थ:–> बुरे वचन विष के समान होते है और अच्छे वचन अमृत के समान लगते है।

17.

जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होय

जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर दास जी कहते है कि हम जैसा भोजन करते है वैसा ही हमारा मन हो जाता है और हम जैसा पानी पीते है वैसी ही हमारी वाणी हो जाती है।

18.

कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।

जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है।

19.

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के मात्र ढाई अक्षर ही अच्छी प्रकार पढ़ ले, भावार्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

kabeer ke dohe in hindi कबीर जी के दोहे

20.

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> इस संसार में ऐसे सज्जनों की अवश्यत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।

21.

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !

22.

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

 माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। यदि कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा !

23.

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या  फेरो।

24.

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

कबीर दोहे का अर्थ:–> सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का।

25.

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

कबीर दोहे का अर्थ:–> यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।

26.

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

कबीर दोहे का अर्थ:–> जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई परिश्रम करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

27.

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

कबीर दोहे का अर्थ:–> यदि कोई सही प्रकार से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।

28.

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

कबीर दोहे का अर्थ:–> न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही अवश्यत से अधिक चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।

29.

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

कबीर दोहे का अर्थ:–> जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।

30.

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

कबीर दोहे का अर्थ:–> इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी प्रकार बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता  झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।

31.

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,

ना काहू से मित्रता,न काहू से बैर।

कबीर दोहे का अर्थ:–> इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से मित्रता नहीं तो शत्रुता भी न हो !

32.

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।

33.

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख

माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर दास जी कहते कि माँगना मरने के समान है इसलिए कभी भी किसी से कुछ मत मांगो।

34.

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।

कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया। कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता। आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है।

35.

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए। बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।

36.

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।

जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है। पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है।

37.

कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।

ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है। मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले।

38.

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।

एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षण भंगुर है जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।

39.

हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।

सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।

कबीर दोहे का अर्थ:–> यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की प्रकार जलती है और केश घास की प्रकार जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस प्रकार जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है।

40.

जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।

जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।

कबीर दोहे का अर्थ:–> इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।

41.

झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।

खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर कहते हैं कि अरे जीव! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।

42.

ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।

भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।

कबीर दोहे का अर्थ:–> कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता।

43.

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत

चन्दन भुवंगा बैठिया,  तऊ सीतलता न तजंत।

कबीर दोहे का अर्थ:–> सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता

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