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kundli me tritiyesh:कुंडली मे पराक्रमेश की विभिन्न भावों मे स्थिति 3rd lord in 12 different houses
kundli me tritiyesh: आज हम कुंडली मे पराक्रमेश की विभिन्न भावों मे स्थिति विषय को समझने का प्रयास करेंगे (3rd lord in 12 different houses ) इससे पहले हम कुंडली में तृतीय भाव को समझने का प्रयास करते हैं ,
कुंडली में तृतीय भाव किसी भी व्यक्ति के साहस, पराक्रम, धैर्य, लेखन क्षमता , यात्रा,छोटे भाई-बहन, मित्र के विषय मे बताता है और साथ ही ये हमारी संवाद शैली को भी दर्शाता है। ये भाव हमारी इच्छाशक्ति , दायां कान, बुद्धिमत्ता, कम दूरी की यात्राएँ आदि को भी दर्शाता है । चूंकि तृतीय भाव ,अष्टम भाव से अष्टम होता है इसलिए ये हमारी आयु और चतुर्थ भाव से द्वादश होता है इसलिए माता की आयु भी बताता है
तृतीय भाव मुख्य रूप से शिक्षा या ज्ञान प्राप्ति के लिए किये गये प्रयासों व इसके प्रति हमारे झुकाव को भी दर्शाता है, ये हमारा दूसरों के प्रति व्यवहार भी दर्शाता है । अंगुली और अंगूठे के बीच का स्थान, यह अकाउंटिंग, गणित, सभी प्रकार के पत्राचार, लेखन, समाचार, संचार के माध्यम जैसे- लेटर बॉक्स, पोस्ट ऑफिस,टेलीग्राफ, टेलीप्रिंट, टेलीफोन, टेलीविजन, टेली कम्युनिकेशन,रिपोर्ट, सिग्नल, एयर मेल, रेडियो आदि के विषय मे भी बताता है।
कुंडली मे पराक्रमेश की विभिन्न भावों मे स्थिति
kundli me tritiyesh-3rd lord in 12 different houses
1) तृतीय भाव अर्थात् भाई-बंधु एवं पराक्रम स्थान का स्वामी पराक्रमेश अथवा तृतीयेश यदि लग्न अर्थात् प्रथम भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति वाद-विवाद करने वाला, कूटनीतिज्ञ तथा झगड़ालू प्रकृति का,कामी, सेवावृत्ति करने वाला, अपने लोगों से मतभेद रखने वाला, दुष्ट मित्रों वाला होता है।
2) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि द्वितीय भाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति अल्पायु दरिद्र, भिक्षुक, निर्धन तथा भाई-बंधुओं का विरोधी होता है। यदि पराक्रमेश शुभ ग्रह हो, तो व्यक्ति राजा अथवा राजा के समान ऐश्वर्यशाली होता है।
3) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि तृतीय भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति श्रेष्ठ मित्र तथा बंधु-बांधवों वाला, मध्यम बल वाला, देवता एवं गुरु का भक्त तथा राजा द्वारा लाभ एवं सम्मान प्राप्त करने वाला होता है।
4) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि चतुर्थ भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति अपने पिता, भाई-बहन एवं कुटंबियों द्वारा सुख प्राप्त करने वाला, माता का विरोधी एवं पैतृक धन को नष्ट करने वाला होता है।
5) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि पंचम भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति अपने पुत्र, भ्रातृ-पुत्र भतीजे अथवा भाइयों द्वारा पालित, दीर्घायु तथा परोपकारी होता है।
6) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि षष्ठ भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति नेत्र रोगी, भूमि का लाभ प्राप्त करने वाला, भाई-बंधुओं का विरोधी तथा किसी रोग विशेष से पीड़ित रहने वाला होता है।
7) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि सप्तम भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति की स्त्री सौभाग्यवती, सुशील तथा पतिव्रता होती है। यदि तृतीयेश पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति की स्त्री अपने देवर से प्रेम करने वाली होती है।
8) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि अष्टम भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति भाई-बहनों से रहित होता है। यदि तृतीयेश पाप ग्रह हो, तो वह बाहु-हीन होता है और यदि जीवित रहता है, तो उसकी आयु केवल आठ वर्ष की होती है।
9) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि नवम भाव में बैठा हो और यदि वह शुभ ग्रह हो, तो व्यक्ति विद्वान तथा भाई-बहनों से प्रेम रखने वाला होता है। यदि पराक्रमेश पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति अपने बंधुओं से परित्यक्त होता है।
1०) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि दशम भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति माता- पिता का भक्त, भाइयों से विशेष प्रेम रखने वाला तथा राजा द्वारा सम्मानित होता है।
11) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि एकादश भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति श्रेष्ठ बंधुओं वाला, भाई-बहनों का पालन करने वाला, भोगी तथा राजा के समान ऐश्वर्यशाली होता है।
12) तृतीय भाव का स्वामी पराक्रमेश यदि द्वादश भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति मित्रों का विरोधी, भाई-बहनों को संताप देने वाला, आलसी तथा उद्योग हीन होता है।
निष्कर्ष :
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