कुंडली में गुरु की स्थिति और अशुभ गुरु के 6 उपाय  Jupiter in Kundli and its Importance as per Lal Kitab

कुंडली में गुरु की स्थिति और अशुभ गुरु के 6 उपाय  Jupiter in Kundli and its Importance as per Lal Kitab

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कुंडली में गुरु की स्थिति और अशुभ गुरु के 6 उपाय  Jupiter in Kundli and its Importance as per Lal KitabLal Kitab

कुंडली में गुरु की स्थिति  (Jupiter in Kundli) और गुरु के साथ अन्य ग्रहों की युति के अनुसार हमें शुभ या अशुभ फल प्राप्त होते है और लाल किताब के अनुसार वो फल क्या होते है इसे जानने का प्रयास आज हम इस पोस्ट के द्वारा करेंगे  , मित्रों ऐसा कहा गया कि बृहस्पति को भगवान ब्रह्मा का ही एक रूप है जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार बृहस्पति स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु के प्रतिनिधि है और जहां धर्म , सत्य और संस्कृति है वहाँ गुरु बृहस्पति है और इसीलिए इन्हे सभी देवताओं का गुरु माना गया है।

गुरु बृहस्पति भौतिक एवं आध्यात्मिक संसार दोनों को ही नियंत्रित करते हैं और हम सब की कुंडली मे 9 th एवं 12 th भाव का स्वामी है और 9 th भाव एवं 5 th भाव के कारक भी है। लाल किताब के अनुसार कुंडली के 12 th भाव पर राहु एवं गुरु का समान अधिकार है। अब यदि कुंडली के 12 th भाव में राहु, गुरु एक साथ हो तो वो आपस मे टकराते हैं और जो ग्रह बलवान हुआ उसके सामने निर्बल ग्रह झुक जाएगा जैसे इनमें यदि राहु शक्तिशाली हुआ तो गुरु राहु के आगे झुक जायेगा और यदि गुरु बलवान हुआ तो राहु झुक जाएगा।

कालपुरुष के शरीर के विभिन्न भागों पर भिन्न भिन्न ग्रहों का अधिकार है जिसमे गुरु का अधिकार गर्दन पर माना गया है।

आइये अब जानते हैं कुंडली में गुरु की स्थिति और लाल किताब के अनुसार उसका महत्त्व (Jupiter in Kundli and its Importance as per Lal Kitab)

कुंडली में गुरु की स्थिति और अशुभ गुरु के 6 उपाय  Jupiter in Kundli and its Importance as per Lal Kitab

कुंडली में गुरु की स्थिति

Jupiter in Kundli and its Importance as per Lal Kitab

गुरु बृहस्पति के सूर्य, चन्द्रमा एवं मंगल परम मित्र तथा बुध व शुक्र शत्रु है और शनि सम ग्रह है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में शत्रु ग्रह भी गुरु बृहस्पति को सम्मान देते हैं। जैसे गुरु का प्रबल शत्रु बुध भी 2 nd , 5 th , 9 th एवं 11 th भावों में होते हुए भी गुरु के समान शुभाशुभ फल देता है, क्योंकि बुध इन भावों में होते हुए शुक्र, सूर्य, गुरु एवं शनि का विरोध नहीं करता है।

कुंडली में यदि गुरु 6 th या 7 th भाव का हो तो वह राशि का ग्रह बन जाता है तथा इन भावों में गुरु बृहस्पति की अशुभता सामान्य उपायों से ही दूर हो जाती है। यहाँ गुरु का फल उसकी स्थिति पर निर्भर होगा जैसे यदि गुरु बलहीन हुआ तो वह बुध चालाक, अवसरवादी और षड्यन्त्रकारी बन जाएगा । यदि बुध निर्बल होकर किसी प्रकार से राहु – केतु, शुक्र या शनि से संबंध बना रहा हो तो वह अशुभ फल ही प्रदान करता है।

गुरु बृहस्पति का अधिदेवता ब्रह्मा है और धर्म स्थानों में इनका निवास है। साथ ही गुरु हमारे पिता, दादा यानि पिता का पिता और कुल पुरोहित का प्रतिनिधित्व करता है। पीतल, सोना गुरु की धातु  और पीला पुखराज गुरु का रत्न है। केले, केसर, कुमकुम, हल्दी,चने की दाल से बनी वस्तुएं गुरु की वस्तुएं मानी जाती हैं और पीपल का वृक्ष गुरु बृहस्पति वह प्रतिनिधि है।

घर परिवार के नियम संस्कार , शांति और पूजा-पाठ से गुरु के 9 th एवं 12 th भावों को जागृत किया जा सकता है।

यदि व्यक्ति के ऊपर गुरु बृहस्पति का अशुभ प्रभाव हो तो इन उपायों को अपनाया जा सकता है

ग्रह के अशुभ होने के संकेत और उसके उपाय Signs of inauspicious planet and its remedies

अशुभ गुरु के 6 उपाय  remedies of malefic Jupiter

  1. चांदी के बर्तन में हल्दी का तिलक लगाकर रखना ।
  2. गुरुवार का व्रत, हरि की पूजा तथा पीपल के वृक्ष को जल देना और पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करना।
  3. पीले फूलों के पौधे लगाना तथा गरुड़ पुराण का पाठ करना
  4. ब्राह्मण, साधु और कुल गुरु की सेवा करना ।
  5. पीला पुखराज पहनना तथा हल्दी का टुकड़ा पीले धागे से दाहिने बाजू या कलाई में बांधना।
  6. गुरु नीच का हो या पापी ग्रहों से पीड़ित हो तो गुरु से संबंधित वस्तुएं जैसे चने की दाल, केला आदि का दान करना।

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निष्कर्ष :

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श्री गणेश ज्योतिष समाधान 

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