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Kundli me neech ka ketu : कुंडली में नीच का केतु के प्रभाव जानने से पहले हमें यह जानना चाहिए कि हमारी कुंडली में केतु ग्रह कब उच्च के और कब नीच के माने गए हैं और उच्च के केतु और नीचे के केतु में क्या अंतर है और केतु राहु ग्रह से कैसे भिन्न है,
साथियों जब भी हम अपनी कुंडली किसी पंडित को दिखाते हैं तो हमें सबसे ज्यादा डर शनि राहु और केतु से ही लगता है और हम यह सोचते हैं की पंडित जी हमारी कुंडली में शनि राहु केतु का दोष न बताएं ।
मित्रों सभी व्यक्ति के जीवन में नौ ग्रहों का प्रभाव शुभ या फिर अशुभ होता है। राहु और केतु को पाप ग्रह माना गया है , केतु और राहु के कारण कालसर्प योग भी बनता है , राहु को जहाँ मिथुन राशि में उच्च का माना गया है वहीँ केतु को धनु राशि में उच्च का माना गया है,
जब हमारी कुंडली में केतु अच्छे होते हैं तो हम अध्यात्मिक और ज्ञानी होते हैं , अपने कार्य क्षेत्र में अत्यधिक सफलता पाते हैं , संतान सुख मिलता है वहीं केतु खराब या निर्बल होने पर हमारे अंदर बुरी आदतें आने लगती है , मानसिक विकार , नींद न आना , माँ के स्वस्थ्य पर विपरीत प्रभाव आदि पड़ने लगता है ।
हम सभी के जीवन में बुध की महादशा के बाद केतु की महादशा आती है , केतु की महादशा 7 वर्ष की होती है। यदि कुंडली में केतु की स्थिति अच्छी होती है तो केतु की महादशा में बहुत ही सफलता प्राप्त होती है अन्यथा केतु की महादशा बहुत दुखदायी होती है । केतु की महादशा के बाद शुक्र की महादशा 20 वर्ष की होती है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु खराब है तो संतान प्राप्ति में और संतान पहले से हो तो उसकी उन्नति में किसी न किसी तरह की रुकावट आने लगती है , नींद न आने की समस्या , मानसिक विकार , लोगों के प्रति भ्रम की स्थिति बनी रहती है , कफ की समस्या आदि भी देखने को मिलती है ।
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अब यदि कोई ग्रह ख़राब फल दे रहा हो , कुपित हो या निर्बल हो तो उस ग्रह के मंत्रों का जाप , रत्न आदि धारण करने चाहिए ,
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