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Kundli me Saptmesh: कुंडली में सप्तम भाव के स्वामी सप्तमेश की विभिन्न भावों मे स्थिति 7th lord in 12 different houses
Kundli me Saptmesh: कुंडली में सप्तम भाव केंद्र स्थान और लग्न का पूरक भाव होता है, सप्तम भाव से जीवनसाथी, जननांग , वैवाहिक सुख , व्यापार, व्यापारिक रणनीति , कूटनीतिआदि को देखा जाता है। कुंडली के सातवें भाव से व्यक्ति द्वारा गोद ली गई संतान का भी पता चलता है। सप्तम भाव व्यक्ति के वैवाहिक जीवन और जीवन मे नैतिक और अनैतिक संबंधों को भी बताता है।
ज्योतिष के अनुसार यदि प्रथम भाव का स्वामी सातवें भाव में बैठा हो तो व्यक्ति अपने मूल स्थान से दूर कहीं और धन संपत्ति को बनाता है। मूलतः सप्तम भाव किसी व्यक्ति की साझेदारी को दर्शाता है जोकि वैवाहिक अथवा व्यापारिक हो सकती है। कुंडली में सप्तम भाव के द्वारा व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुखों और दुःखों को जाना जा सकता है।
किसी व्यक्ति की कुंडली देख सप्तम भाव से ये विचार किया जाता है कि व्यक्ति को किसी के साथ साझेदारी से लाभ मिलेगा या नहीं और उस व्यक्ति के संबंध अपने पार्टनर के साथ कैसे रहेंगे।
हमारे शरीर में यौनांग भी सप्तम भाव से ही देखे जाते है। वैदिक ज्योतिष के मे सप्तम भाव कालपुरुष के यौन अंगों का प्रतीक होते है और जब सप्तम भाव पर पापी ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति को यौन संबंधी कठिनाई होती है।
तो जब सप्तम भाव इतना आदिक महत्वपूर्ण है तो आइये जानते हैं कुंडली मे सप्तम भाव के स्वामी सप्तमेश की विभिन्न भावों मे स्थिति से क्या फल प्राप्त होता है।
कुंडली में सप्तम भाव के स्वामी सप्तमेश की विभिन्न भावों मे स्थिति
Kundli me Saptmesh: 7th lord in 12 different houses
1. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश जोकि स्त्री , दैनिक व्यवसाय के स्थान का स्वामी हुआ यदि लग्न अर्थात् प्रथमभाव में बैठा हो तो व्यक्ति अपनी स्त्री से विशेष स्नेह रखने वाला किन्तु अन्य स्त्रियों से भी आकर्षित रहने वाला होता होता है , अपनी स्त्री की बात सुनने वाला होता है, ऐसा व्यक्ति अच्छा व्यवसायी भी बन सकता है ।
2. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि द्वितीयभाव में बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति की स्त्री स्वभाव ठीक नहीं होता है लेकिन उसे स्त्री के द्वारा धन का लाभ मिलता है ।
3. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि तृतीयभाव में बैठा हो, तो व्यक्ति आत्मबली, भाई-बंधुओं से प्रेम रखने वाला किन्तु स्वयं दुखी रहने वाला होता है , यदि सप्तमेश पाप ग्रह हो या उसकी स्त्री अपने देवर या पति के मित्रों से प्रेम करने वाली हो सकती है। यदि इस सप्तमेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसे व्यक्ति की स्त्री पर उसके देवर या पति के मित्रों की गलत दृष्टि रहती है ।
4. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि चतुर्थभाव में बैठा हो तो व्यक्ति चंचल स्वभाव का होता है किन्तु ऐसा व्यक्ति अपने पिता के शत्रुओं के प्रति आदर भाव रखने वाला होता है।
5. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि पंचमभाव में बैठा हो तो व्यक्ति भाग्यवान,पुत्रवान, साहसी होता है। उसे प्रेम करने वाले और उसका साथ चाहने वाले अनेक लोग होते है, ऐसे व्यक्ति दाम्पत्य जीवन ठीक ठाक रहता है ।
6. सप्तमभाग का स्वामी सप्तमेश यदि षष्ठ भाव में बैठा हो तो व्यक्ति अपनी स्त्री से बैर रखने वाला या रोगी स्त्री का पति होता है , ऐसे व्यक्ति को अपनी पत्नी के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए । ऐसा व्यक्ति रोग आदि से जुड़ा व्यवसाय करना चाहिए जैसे मेडिसन या अस्पताल से जुड़ा काम ।
7. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि अपने ही भाव अर्थात् सप्तमभाव में बैठा हो व्यक्ति तेजस्वी, निर्मल स्वभाव का तथा सबसे प्रेम रखने वाला होता है। उसे अच्छा और समय पर जीवनसाथी मिलता है ।
8. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि अष्टमभाव में बैठा हो, तो व्यक्ति अपना विवाह न करके वेश्याओं के साथ रमण करता है और प्रतिदिन चिंतायुक्त एवं दुःखी बना रहता है।
9. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि नवें भाव में बैठा हो तो व्यक्ति सुशील और तेजस्वी होता है। उसको पत्नी भी सुशील होती है। यदि सप्तमेश पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति नपुंसक और कुरूप हो सकता है। यदि उसके ऊपर लग्नेश की दृष्टि हो तो वह नीतिशास्त्र का विशेषज्ञ होता है।
10. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि दशमभाव में बैठा हो, तो व्यक्ति कपटी होता है। यदि सप्तमेश पापग्रह हो वह दुःख से पीड़ित एवं शत्रुओं के वश में रहने वाला होता है।
11. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि एकादशभाव में बैठा हो, तो व्यक्ति को पत्नी सुंदर, पतिव्रता एवं श्रेष्ठ स्वभाव वाली होती है।
12. सप्तमभाव का स्वामी सप्तमेश यदि द्वादशभाव में बैठा हो, तो व्यक्ति की पत्नी उसके भाइयों तथा मित्रों से प्रेम करती है। वह दुष्ट लोगों से प्रेम करने वाली तथा चंचल स्वभाव वाली होती है।
निष्कर्ष :
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