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अस्त ग्रह किसे कहते है-ग्रह अस्त होने का फल 9 combust planets results various obstacles
ग्रह अस्त होने का फल- साथियों जिनको ज्योतिष मे रुचि होती है वो ये जानना चाहते है कि अस्त ग्रह किसे कहते है ,
कहा जाता है कि हमारी कुंडली मे ग्रहों के निर्बल होने में उनका अस्त होना एक प्रमुख कारण है । अस्त ग्रह अपने नैसर्गिक गुणों को खोकर बलहीन हो जाते हैं और यदि वह कुंडली मे मूल त्रिकोण या उच्च राशि में भी बैठे हों तो भी अच्छा फल नही दे पाते हैं।
जिस व्यक्ति की कुंडली का प्रमुख ग्रह अस्त हो तो वो एक रोगी, बलहीन और अस्वस्थ व्यक्ति जैसे हो जाता है। अत: किसी कुंडली मे ग्रह अस्त होने का फल बताने से पहले अस्तग्रह का विश्लेषण अवश्य कर लेना चाहिए।
अस्त ग्रह की दशान्तर्दशा में कोई गंभीर दुर्घटना, दु:ख या रोग आदि हो जाती है। जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में कोई शुभ ग्रह यथा बृहस्पति, शुक्र, चंद्र, बुध आदि अस्त होते हैं तो परिणाम और भी गंभीर हो जाते हैं।
अस्तग्रहों के विषय मे संस्कृत मे एक श्लोक है : “त्रीभि अस्तै भवे ज़डवत” अर्थात् किसी जन्मपत्रिका में तीन ग्रहों के अस्त होने पर व्यक्ति ज़ड पदार्थ के समान हो जाता है।
ज़ड से तात्पर्य यहां व्यक्ति की निष्क्रियता और आलसीपन से है अर्थात् ऎसा व्यक्ति स्थिर बना रहना चाहता है, उसके शरीर, मन और वचन सभी में शिथिलता आ जाती है।
अनेक कुण्डलियों में तो देखने को मिलता है कि किसी एक शुभ ग्रह के पूर्ण अस्त हो जाने मात्र से व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही अभावग्रस्त हो जाता है और परिणाम किसी भी रूप में आ सकते हैं
जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाना, किसी पैतृक संपत्ति का नष्ट हो जाना, शरीर का कोई अंग-भंग हो जाना या किसी परियोजना में भारी हानि होने के कारण भारी धनाभाव हो जाना आदि।
किन्तु जब कोई ग्रह अस्त हो परंतु वह शुभ भाव में स्थित हो जैसे लग्न मे अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो अस्तग्रह के दुष्परिणामों में कमी आ जाती है।
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ग्रह अस्त होने का फल
यदि व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह सूर्य के निकट आ जाता है तो वो अस्त हो जाता है और ऎसा ग्रह बलहीन हो जाता है।
यदि व्यक्ति की कुंडली में लग्नेश अर्थात प्रथम भाव के स्वामी अस्त हो और इस अस्त ग्रह पर से कोई पाप ग्रह संचार करे तो फल अत्यंत प्रतिकूल मिलते हैं। यदि कोई ग्रह अस्त हो और वह पाप प्रभाव में भी हो तो ऎसे ग्रह के दुष्परिणामों से बचने के लिए उस ग्रह से संबंधित दान करना श्रेष्ठ उपाय होता है।
किसी ग्रह के अस्त होने पर ऎसे ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में महत्वपूर्ण कार्यों मे विलंब, बनता हुआ काम बिगड़ जाना या निष्फल हो जाने जैसे दु:खों का सामना करना प़डता है।
उदाहरण के लिए विवाह का कारक ग्रह यदि अस्त हो जाए और नवांश लग्नेश अर्थात प्रथम भाव के स्वामी भी अस्त हो तो ऎसा व्यक्ति चाहे अमीर हो या निर्धन, सुंदर हो या कुरूप, ल़डका हो या ल़डकी सभी के विवाह में विलंब होता ही है।
यदि इन ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आ जाए तो व्यक्ति के जीवन मे विवाह में देरी होती है और वो व्यक्ति सही समय पर वैवाहिक सुखों (दांपत्य सुख) से वंचित हो जाता है जिसके कारण उसे सही समय पर संतान सुख भी नहीं मिल पाता।
आइये हम सब जानते है ग्रह अस्त होने का फल
चंद्रमा ग्रह अस्त कब होता है?
image credit : pexels
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा स्त होते है तो मानसिक अशांति, नींद न आना , माँ से दूरी या माँ का अस्वस्थ होना, पैतृक संपत्ति का न मिलना या किसी कारण वश नष्ट होना, धन की कमी , जीवन मे प्रसनता या आशा की कमी होना , व्यक्ति का अशांत हो जाना, मिर्गी होना, फेफ़डों में रोग होना आदि घटनाएं होती है।
यदि अस्त चंद्रमा 8th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति बहुत लंबे समय तक अवसादग्रस्त रहता है, इसी प्रकार 12 th भाव के स्वामी के प्रभाव में आने पर व्यक्ति नशे का आदि हो जाता है अथवा किसी रोग की निरंतर दवा खाता है।
मंगल ग्रह अस्त होने का फल
किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल के अस्त होने पर उसकी अंतर्दशा में व्यक्ति का बिना बात के क्रोधी होना , नसों में दर्द, रक्त का दूषित हो जाना, रक्तचाप से पीड़ित होना आदि कष्ट हो जाते हैं। यदि अस्त मंगल पर राहु/केतु का प्रभाव हो तो व्यक्ति दुर्घटना, मुकदमेंबाजी या कैंसर का शिकार हो जाता है।
यदि मंगल 6th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में हो तो अस्वस्थ , दूषित रक्त, कैंसर या विवाद में चोटग्रस्त हो जाता है। इसी प्रकार 8th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति घोटालेबाज हो जाता है, भष्टाचार में लिप्त रहता है। 12 th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी नशीले पदार्थ का सेवन करने लगता है।
बुध ग्रह अस्त होने का फल
अस्त बुध की अंतर्दशा में व्यक्ति भ्रमित, संवेदनशील, निर्णय लेने में विलंब करता है। अति विश्वास या न्यून विश्वास का शिकार होकर तनावग्रस्त हो जाता है, अशांत रहता है। उसके शरीर में लकवा, ऎंठन, श्वास रोग अथवा चर्म रोग हो जाते हैं। यदि अस्त बुध 6th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति तनाव, चर्म रोग या लकवाग्रस्त होकर अस्वस्थ रहता है।
यदि बुध 8th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति दमा रोग से ग्रसित, मानसिक अवसाद अथवा किसी प्रियजन की मृत्यु का शोक भोगता है। यदि बुध 12 th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति किसी नशे का शिकार या रोगग्रस्त रहता है।
बृहस्पति ग्रह अस्त होने का फल
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पति अस्त हों और बृहस्पति की अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति लीवर की रोग और ज्वर से ग्रसित रहता है। वह अध्ययन से कट जाता है। उसकी आध्यात्मिक रूचि क्षीण हो जाती है, वह स्वार्थी हो जाता है। यदि अस्त बृहस्पति पर अन्य दूषित प्रभाव हों तो वह पुरूष संतान से वंचित हो सकता है।
बृहस्पति के 6th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में होने पर उच्च ज्वर, टायफाइड, मधुमेह तथा मुकदमों में फँसना, 8th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में होने पर प्रतिष्ठा में हानि, किसी प्रियजन का वियोग अथवा किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाना, इसी प्रकार 12 th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति के विवाहेत्तर संबंध बन जाते हैं और वह किसी व्यसन से ग्रसित हो जाता है।
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शुक्र ग्रह अस्त होने का फल
जब किसी कुंडली में शुक्र अस्त हो और उसकी अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति की पत्नी रोगग्रस्त हो जाती है अथवा उसके गर्भाशय या बच्चोदानी में समस्या हो जाती है। व्यक्ति नेत्र रोग, चर्म रोग से भी ग्रसित हो जाता है। अस्त शुक्र के राहु-केतु के प्रभाव में आने पर व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट होती है, वह किडनी विकार या मधुमेह का शिकार हो जाता है।
यदि अस्त शुक्र 6th भाव के स्वामी के दुष्प्रभाव में हों तो मूत्राशय रोग, यौनांगों में विकार अथवा चर्म रोग से ग्रसित होता है, 8th भाव के स्वामी के दुष्प्रभाव में होने पर दांपत्य जीवन में कटुता, किसी प्रियजन की मृत्यु का दु:ख तथा 12 th भाव के स्वामी के दुष्प्रभाव में होने पर व्यक्ति यौन संक्रमण रोग और नशे का आदि हो जाता है।
शनि ग्रह अस्त होने का फल
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अस्त हो और उनकी दशा-अन्तर्दशा आ जावे तो वह अस्थि भंग होने, टांगों या पैरों में दर्द, रीढ़ की हड्डी में दर्द आदि से पीडित रहता है। उसे कठोर परिश्रम करना प़डता है, उसका कार्य व्यवहार नीच प्रकृति के लोगों से रहता है। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त होने लगती है। शनि के राहु-केतु से प्रभावित होने पर जो़डो में दर्द रहने लगता है।
अस्त शनि के 6th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में होने पर रीढ़ की हड्डी में दर्द, जो़डों में दर्द, शरीर में जक़डन रहने लगता है, मुकदमों का सामना करना प़डता है। अस्त शनि के 8th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में होने पर अस्थि टूट जाने, रोजगार में समस्या अथवा किसी प्रियजन का अभाव हो जाना होता है। शनि के 12 th भाव के स्वामी के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी रोग से ग्रस्त रहने लगता है अथवा व्यसन में डूब जाता है।
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सूर्य ग्रह अस्त होने का फल
सूर्य कभी अस्त नही होते है बल्कि सूर्य के निकट आने पर ही अन्य ग्रह अस्त होते हैं , हम सूर्य पर ग्रहण लाग्ने की अवस्था को सूर्य अस्त होना मान सकते है और को ग्रहण लगाते है राहु
निष्कर्ष :
ग्रह अस्त होने पर उस ग्रह के मंत्रों का जाप , रत्न आदि धारण करने चाहिए , यदि कोई उपाय कर रहें हों तो वो निरंतर और लंबे समय तक करने चाहिए जबकि उपाय करने वाले लोग शीघ्र ही उपाय छोड़ देते है और सफलता के निकट पहुचकर उपाय बदल देते है या उपाय बताने वाले को बदल देते है और दूसरा उपाय शून्य से आरंभ करते है।
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