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Kundli me Shashtesh: कुंडली मे षष्ठ भाव के स्वामी षष्ठेश की विभिन्न भावों मे स्थिति 6th lord in 12 different houses
Kundli me Shashtesh: कुंडली मे षष्ठ भाव से रोग, ऋण और शत्रुओं का पता चलता है। जब कुंडली का ये भाव खराब स्थिति मे होता है तो यह भाव रोगों को जन्म देता है लेकिन यदि ये भाव अच्छी स्थिति मे हो तो ये हमे स्वस्थ रहने के लिए भरपूर शक्ति देता है। छठे भाव से परिश्रम, प्रतिस्पर्धा पता चलती है और साथ ही ऋण और ऋण को चुकाने की क्षमता ,रोग , शत्रु, चोर, दुःख, निराशा,युद्ध आदि को दर्शाता है।
कुंडली का छठा भाव पेट और वात रोग से जुड़ी समस्या, मामा, मानसिक चिंता और पीड़ा, नेत्रों मे कठिनाई,सेवा, दान की प्राप्ति बताता है , काल पुरुष के अनुसार कुंडली में छठे भाव की राशि कन्या है और इसका स्वामी बुध है। जबकि ऋषि पराशर के अनुसार छठा भाव स्त्रियों की कुंडली में उनकी सौतेली मां, गर्भपात या अचानक प्रसव, चरित्रहीनता को बताता है।
आइये जानने का प्रयास करते हैं कि कुंडली मे छठे भाव का स्वामी षष्ठेश की विभिन्न भावों मे स्थिति से क्या फल प्राप्त होता है
कुंडली मे षष्ठ भाव के स्वामी षष्ठेश की विभिन्न भावों मे स्थिति
Kundli me Shashtesh – 6th lord in 12 different houses
1) छठे भाव अर्थात् रोग एवं शत्रु स्थान का स्वामी ‘रोगेश’ अथवा पष्ठेश यदि लग्न अर्थात् प्रथम भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति स्वस्थ, बलवान, शत्रुजयी, स्वच्छन्द प्रकृति का, अधिक बोलने वाला, धनी, कुटुंबियों को कष्ट देने वाला होता है।
2) छठे भाव का स्वामी पष्ठेश यदि द्वितीय भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति चतुर, रोगी,धन-संचयी, प्रसिद्ध, अच्छे स्थान में रहने वाला, दुष्ट प्रकृति का तथा मित्रों के धन को नष्ट करने वाला होता है।
3) छठे भाव का स्वामी पष्ठेश यदि तृतीय भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति लोगों को कष्ट देने वाला, अपने परिजनों के लिए कष्टकारी तथा युद्ध एवं झगड़ों के मामले में स्वयं दुःख भोगने वाला होता है।
4) छठे भाव का स्वामी षष्ठेश यदि चतुर्थ भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति अपने पिता से शत्रुता रखता है और उसका पिता चिर रोगी होता है। ऐसा व्यक्ति स्थिर-संपत्ति प्राप्त करने वाला होता है।
5) छठे भाव का स्वामी षष्ठेश यदि पंचम भाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति की अपनी संतान से शत्रुता रहती है किंतु यदि षष्ठेश शुभ ग्रह हो, तो शत्रुता नहीं होती, किंतु ऐसा व्यक्ति निरोगी , ऋण विहीन और शत्रुओं का नाश करने वाला होता है।
6) पष्ठ भाव का स्वामी षष्ठेश यदि अपने ही घर पृष्ठ भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति रोग तथा शत्रुओं से रहित होता है। वह कृपण, सुखी, धैर्यवान किंतु खराब स्थान पर रहने वाला होता है।
7) षष्ठ भाव का स्वामी षष्ठेश यदि सप्तम भाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति की स्त्री दुष्ट, पति से विरोध रखने वाली तथा संताप देने वाली होती है। यदि पष्ठेश शुभ ग्रह हो, तो स्त्री दुष्टा तो नहीं होती, अपितु वह रोगी , बंध्या हो सकती है ।
8) कुछ पुस्तकों के अनुसार छठे भाव का स्वामी पष्ठेश यदि शनि हो और वह अष्टम भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति की संग्रहणी रोग से, मंगल हो तो सर्प के काटने से, बुध हो तो विषदोष से, चंद्रमा हो तो बालारिष्ट दोष से, सूर्य हो तो सिंह व्याघ्र आदि से, गुरु हो तो कुबुद्धि से और शुक्र हो तो नेत्र रोग से मृत्यु होती है।
9) छठे भाव का स्वामी षष्ठेश यदि नवम भाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति लंगड़ा, बंधु-विरोधी, क्रूर, शास्त्र-पुराणादि को न मानने वाला तथा भिक्षुक होता है।
10) छठे भाव का स्वामी षष्ठेश यदि दशम भाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति अपनी माता का शत्रु तथा दुष्ट स्व भाव वाला होता है। यदि शुभ ग्रह हो, तो पिता का पालन करने वाला, किंतु अन्य परिवारीजनों का शत्रु होता है।
11) छठे भाव का स्वामी पष्ठेश यदि एकादश भाव में बैठा हो और वह पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति की मृत्यु शत्रु के द्वारा होती है। यदि शुभ ग्रह हो तो चोरों के द्वारा धन की हानि होती हैं तथा चतुष्पदों जानवरों) के द्वारा लाभ होता है।
12) छठे भाव का स्वामी षष्ठेश यदि द्वादश भाव में बैठा हो, तो व्यक्ति को पशुओं से धन की हानि होती है। ऐसा व्यक्ति विदेश के आवागमन से धन प्राप्त करता है तथा भाग्यवादी होता है।
निष्कर्ष :
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